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(सईद गौरी *मस्त* द्वारा) मो.– 9893 63 7053
- लघुकथा– मगरूर दौलतमंद या बिगड़े नवाब….
- क्यों रे हरामखोर, इधर सुन,- सब काम बाद में करना पहले मेरा एक काम कर (रौब झाड़ते हुए घोर अहंकारी राजा महाराजा की शैली में एक अपरिपक्व किंतु धनवान गरजा )
- जी मालिक काम बताएं (अधीनस्थ कर्मचारी बोला)
- अबे जल्दी पेशाब करके आ मुझे बहुत तेज लग रही है द(मगरूर बोला)
- लेकिन मालिक मैं आपका यह काम कर भी दूंगा तो भी यह काम आपके जाने से ही पूरा हो सकेगा आगे आपकी मर्जी
- ( ईश्वर का शुक्र है कि कुछ महत्वपूर्ण कार्यों पर किसी भी इंसान या राजा महाराजा या बादशाह की हुकूमत नहीं चलती नहीं तो हर बिगड़ा नवाब अपने अधीनस्थों का जीना मुश्किल कर देता
- आगे आपकी मर्जी
- हां ठीक है ठीक है अधीनस्थ को डपटते हुए वह अति व्यस्त मगरूर लघुशंका के लिए चल देता है
- ईश्वर का शुक्र है
- उर्दू अदब
- जख्म कुरेद कर तौहीन.
- चाहा जो अलगाव, बनाया पाकिस्तान ,
- जो वतन परस्त हैं,- यहीं रहेंगे हिंदुस्तान
- सोया है इतिहास का शेर,- तो सोने दो,
- जागा तो कर देगा सबको लहूलुहान
- शायर, गजलकार एवं गीतकार- पत्रकार सईद गौरी मस्त इंडिया एमपी डिस्ट्रिक्ट गुना ब्लॉक चाचौड़ा बीनागंज मो.– 9893 63 7053