- और एक रौशन चिराग़ पैदा नहीं किया?”
- और क्या हम ने बादलों से मुसलाधार पानी नहीं बरसाया? 12
- ताकि उगाऐं उस के द्वारा गल्ला और वनस्पति।
- और घने बाग़ ।
- बेशक फैसले का दिन एक मुकर्रर वक्त (निश्चित समय) है, 13
- जिस दिन सूर फूँका जायेगा तो तुम आओगे फ़ौज दर फ़ौज, 14
- और आसमान खोल दिया जायेगा तो उस में दरवाज़े ही दरवाज़े हो जाऐंगे। 15
- और पहाड़ चलाये जायेंगे तो वह सराब (मरीचिका) बन कर रह जाऐंगे। 16
- बेशक जहन्नम घात में है।
- सरकशों का ठिकाना, 17
- जिस में वह मुद्दतों पड़े रहेंगे 18
- वहाँ वह न किसी तरह की ठन्डक का मज़ा चखेंगे और न पीने की चीज़ का,
- सिवाये गर्म पानी और पीप के।
- उन के करतूतों का ठीक ठीक बदला।
- वो हिसाब की उम्मीद न रखते थे।
- और हमारी आयतों को बिल्कुल झुटला दिया था।
- जब कि हम ने हर चीज़ को लिख कर सुरक्षित कर रखा था। 19
- तो चखो ! अब हम तुम्हारे अज़ाब ही में वृद्धि करेंगे।
- निश्चय ही (अल्लाह का) डर रखने वालों के लिए कामयाबी है। 20
- बाग़ और अंगूर,
- और नवजवान हम उम्र (समान आयू वाली) लड़कीयाँ,
- और छलकते जाम, 21
- वहाँ वह न कोई फुज़ूल बात सुनेंगे और न झूठी बात। 22
- यह तुम्हारे रब की ओर से बदला होगा और काफ़ी ईनाम, 23
- उस की तरफ़ से, जो आसमानों और ज़मीन का, और जो कुछ उन के बीच है उस का मालिक है। रहमान जिस से बात करने का किसी को यारा नहीं। 24
- जिस दिन रूह 25 (अल-अमीन) और फ़रिश्ते सफ़बस्ता (पंक्तिबद्ध) खड़े होंगे। कोई बात न कर सकेगा सिवाय 26 उस के जिसे रहमान इजाज़त दे और वह बिलकुल दुरुस्त बात कहेगा।
- यह दिन बरहत (सत्य) है। 27 तो जो चाहे अपने रब के पास ठिकाना बना ले।
- हम ने तुम्हें एक ऐसे अज़ाब (यातना) से आगाह कर दिया है जो करीब आ लगा है। 20 जिस दिन आदमी देख लेगा कि उस ने आगे के लिए क्या किया है 20 और काफिर (इन्कार करने वाला) कहेगा, काश में मिट्टी होता।
मफहूम :तफसीर/भावार्थ:व्याख्या—-
- सूरज को ऐसा रौशन बनाया गया है कि उस की रौशनी कभी मांद नहीं पड़ती। मौजूदा साइंस की रौशनी में सूरज को देखिये तो ख़ुदा के करिशमों के पहलू और भी रौशन हो कर सामने आयेंगे । सूरज का ताप (Tempera- ture) एक करोड़ चालीस लाख (१,४०,०००,००) डीग्री सेन्टीग्रेट है। वह ज़मीन से एक सौ गुना से अधिक बड़ा है। उसे ज़मीन से नौ करोड़ो तीस लाख (९,३०,०००,००) मील की दूरी पर रखा गया है जिस की वजह से ज़मीन पर न बेहद गर्मी होती है न बेहद सर्दी, बल्कि जानदारों के लिए जितना ताप होना चाहिए ठीक वही ताप यहाँ रहता है और सूरज के इसी ताप से यहाँ बारिश भी होती है और फसलें भी पकती हैं। फिर क्या तुम्हें इस रौशन चिराग़ से भी अल्लाह की कुदरत और रुबूबियत के बारे में कोई रौशनी नहीं मिलती ?
- बादलों के द्वारा इन्सानी आबादियों को अधिकता के साथ पानी मुहैय्या करने का प्रबन्ध और इस के द्वारा गल्ला और सब्ज़ी की पैदावार और घने बाग़ों का उग जाना जिस से इन्सान को रिज़्क़ (जिविका) पहुँचाने का काम निरंतर हो रहा है। क्या यह इन्सान की आँखें खोल देने के लिए काफ़ी नहीं है? क्या इस के पीछे एक ऐसी हस्ती का हाथ दिखाई नहीं देता जो उस की परवरिश का पूरा पूरा प्रबन्ध कर रही है?
- यह है वह बात जिस के बारे में ऊपर की आयत
६से १६ में दलील (प्रमाण) पेश की गई है। जिस का
का दिन (Day of Judgement)
इस कायनात के अंश बिल्कुल बेतरतीब हैं और ये पूरा कारखाना (Unsystamatic) मालूम होता है?
या यह कि कायनात और ज़िन्दगी के यह आसार इस हक़ीक़त को स्पष्ट करते हैं कि तुम्हारा पैदा करने वाला ज़बरदस्त कुदरत का मालिक है और न सिर्फ ज़बरदस्त कुदरत का मालिक है बल्कि साथ ही वह रुबूबियत और हिकमत की सिफ़ात (खूबियों) को भी अपने अन्दर रखता है। अल्लाह को इन सिफ़ात का मालिक मान लेने के बाद फैसले के दिन को मान लेने में कोई दुश्वारी बाक़ी नहीं रहती बल्कि इस सिफ़ात का लाज़मी तक़ाज़ा क़रार पाती है कि फ़ैसले का दिन बरपा हो । जब यह स्पष्ट हुआ कि अल्लाह ज़बरदस्त कुदरत का मालिक है, फिर उस के लिए मुर्दों को ज़िन्दा करना बेहद आसान बात है। इस के नामुमकिन या असम्भव होने का क्या सवाल ? और फ़िर जो हस्ती इन्सान की रुबूबियत का सामान इतनी तैयारीयों के साथ कर रही है और जिस ने उसे अनगिनत नेमतें प्रदान की हों वह अपनी उन नेअमतों का हिसाब उस से क्यों न लेगी और अपने वफ़ादार बन्दों को इनाम का हक़दार और सरकशों को दण्ड का पात्र न ठहरायेगी ? उस की हिकमत इस कायनात की एक एक चीज़ से ज़ाहिर हो रही है। उस का हर काम ज्ञान पर आधारित और योजना बद्ध (Well Planned) है। फिर क्या यह स्वीकार किया जा सकता है कि इन्सान ही की पैदाइश (उत्पत्ति) बेमक़सद हुई है? इसे मर कर मिट्टी में मिल जाना है और इस के बाद कुछ नहीं ? अच्छे बुरे में कोई भेदभाव नही? अल्लाह तआला को मानने वाले और उस का इन्कार करने वाले, उस के आज्ञाकारी और उस के अवज्ञाकारी सब बराबर हैं? न किसी को ईनाम मिलना है न किसी को सजा? अल्लाह को अदालत कोई
काजमी तकाजा करार पाती है कि फैसले का दिन बरपा हो। जब यह स्पष्ट हुआ कि अल्लाह जबरदस्त कुदरत का मालिक है, फिर उस के लिए मुदों को जिन्दा करना बेहद आसान बात है। इस के नामुमकिन या असम्भव होने का क्या सवाल ? और फिर जो हस्ती इन्सान की रुबूबियत का सामान इतनी तैयारीयों के साथ कर रही है और जिस ने उसे अनगिनत नेमतें प्रदान की हो वह अपनी उन नेअमतों का हिसाब उस से क्यों न लेगी और अपने वफ़ादार बन्दों को इनाम का हकदार और सरकशों को दण्ड का पात्र न ठहरायेगी ? उस की हिकमत इस कायनात की एक एक चीज से जाहिर हो रही है। उस का हर काम ज्ञान पर आधारित और योजना बद्ध (Well Planned) है। फिर क्या यह स्वीकार किया जा सकता है कि इन्सान ही की पैदाइश (उत्पत्ति) बेमक़सद हुई है? इसे मर कर मिट्टी में मिल जाना है और इस के बाद कुछ नहीं? अच्छे बुरे में कोई भेदभाव नहीं? अल्लाह तआला को मानने वाले और उस का इन्कार करने वाले, उस के आज्ञाकारी और उस के अवज्ञाकारी सब बराबर है? न किसी को ईनाम मिलना है न किसी को सजा? अल्लाह की अदालत कोई अदालत ही नहीं जहाँ जवाबदेही के लिए हाजिरी का सवाल हो? क्या इस तरह की बातें तुम्हारी बुद्धि में समाती है और उस के हिकमत के गुण से मेल खाती है? वास्तविकता यह है कि अल्लाह तआला की जिस हिकमत का परीक्षण इन्सान आपने इर्द गिर्द फैली हुई दुनिया में करता है उस का यह तकाला है कि फैसले का दिन बरपा हो। इस से कुर्बान की इस खबर की भी पूरी ताईद होती है कि बदले का एक दिन मुकर्रर है। इस रोज तमाम इन्सानों को दोबारा जिन्दा किया जायगा।
- अर्थात कियामत के दिन बिगुल बजाते ही सारे मुर्दा इन्सान जिन्दा हो कर अल्पनाह की अदालत में हाजिर होने के लिए निकल पड़ेंगे।
- 15. आसमान की हकीकतें आज इन्सान की नजरों से खुल जाने से उन को अपनी आँखों से देख लेगा।
- इशारा है इस बात की तरफ कि क़ियामत के दिन इस दुनिया की व्यस्था बदल जायेगी। यह जमीन एक चटियल मैदान का रूप धारण कर लेगी जहाँ तमाम लोगों को इकट्ठा कर के अदालत बरपा की जायेगी। बड़े बड़े पहाड़ हवा में उड़ रहे होंगे और उन की जगह रेत का मैदान होगा। हश्र के मैदान में उन का कोई अस्तित्व बाक़ी नहीं रहेगा। इस से क़ियामत के दिन की हौलनाकी (Horrors), जमीन की बनावट में बहुत बड़े परिवर्तन के उत्पन्न हो जाने और हक के मैदान की विशालता का अन्दाज़ा होता है।
- ख़ुदा के सरकश (नाफ़रमान) बन्दे दुनिया में खुदा से निडर हो कर ज़िन्दगी गुजारते हैं और यह समझते हैं कि उनके लिए अज़ाब (यातना) और खतरे की कोई बात नही है। लेकिन क़ियामत के दिन जहन्नम इस तरह सामने आयेगी जैसे वह घात ही में थी और वह उस में ऐसे फँसेंगे कि फिर कभी उस से निकल न सकेंगे।
- मतलब यह कि एक दौर के बाद दूसरा दौर, इस तरह वह लगातार अज़ाब (यातना) ही में रहेंगे। इतनी कठोर सज़ा इस लिए कि उन्होंने अल्लाह की बन्दगी के दर पर अल्लाह से बगावत का रास्ता अपनाया। अपने सच्चे उपकारी की नाशुक्री करते रहे और फैसले के दिन को मानने और उस के अनुसार ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए किसी तरह आमादा नहीं हुए। अत: जो बीज उन्होंने बोया था उसी के फल वह काटते रहेंगे।
- अर्थात उन के कर्मों का रेकार्ड हम तैयार कर रहे थे गोया हर व्यक्ति की पूरी बोलती फ़िल्म तैयार की जा रही थी। जिस में सिर्फ कहनी और करनी ही का नहीं, नियतों तक को रेकार्ड किया जा रहा था और यह इस भुलावे में पड़े रहे कि हम तो अपनी मनमानी करने के लिए आज़ाद हैं और उन के करनी का कोई रेकार्ड तैयार नहीं किया जा रहा है। क्यों कि उन्हें न कोई ऐसा कैमरा दिखाई देता था जो उन की अमली ज़िन्दगी (Practical Life) की तस्वीर खींच रहा हो और न कोई टेप रेकार्ड जो उन की बातों के कैसिट तैय्यार कर रहा हो।
- यहाँ मुत्तक़ीन (अल्लाह का डर रखने वाले) का शब्द “ताग़ीन” (सरकश) के मुक़ाबले में इस्तेमाल किया गया है। अर्थात् वह लोग जो अल्लाह और बदले के दिन पर ईमान रखते हैं उस की आयात को मानते हैं और इस तरीक़े से ज़िन्दगी गुज़ारते हैं कि उन्हें अपने कर्मों की जवाबदेही करनी है।
- इस से मुराद शुद्ध शराब के जाम हैं।
- अर्थात् जन्नत का माहौल बेहद पाकीज़ा होगा सोसाइटी भी पाक और खाने पीने की तमाम वस्तुएँ भी पाक। यहाँ तक कि वहाँ कि शराब भी दुनिया की शराब जैसी नहीं होगी कि आदमी पी कर बकवास करने लगे। बल्कि यह बेहद पाकीज़ा होगी और उस से ऐसी कैफ़ियत पैदा होगी जिस में बेहुदगी का कोई अंश न होगा। इसी तरह यहाँ फुज़ूल (व्यर्थ) की बातें और तमाशे भी नहीं होंगे और न झूट एवं तोहमतों व आरोपों का वजूद होगा बल्कि वह एक गम्भीर एवं प्रसन्नता का माहौल होगा जहाँ हर तरफ़ इख़लाक़ (नैतिकता) और शराफ़त ही के नमूने दिखाई देंगे।
- मुत्तक्रियों (अल्लाह का डर रखने वालों) को सिर्फ़ उन के नेक कामों का इनाम देने पर ही बस नहीं किया जायेगा बल्कि अल्लाह तआला उन्हें अपनी तरफ से काफ़ी उपहार भी प्रदान करेगा ।
- मतलब क़ियामत के दिन जब अल्लाह तआला अपनी अदालत बरपा करेगा तो उस अदालत के रोब का हाल यह होगा कि कोई उस के सामने जुबान खोलने की जुर्भत न कर सकेगा। इस से मुश्रिकीन के इस विचार का खण्डन होता है कि उन के देवी देवता जो चाहेंगे ख़ुदा से मनवा सकेंगे।
- रुह से मुराद रुहुलअमीन अर्थात जिब्रील अलैहिस्सलाम हैं। फ़रिश्तों के सरदार होने की हैसियत से उन का वर्णन विशेष रुप से किया गया है और मक़सद बताने का यह है कि कियामत के रोज़ जब अल्लाह अदालत बरपा फ़रमायेगा तो फ़रिश्ते यहाँ एक कि जिब्रील अलैहिस्सलाम भी पंक्तिबद्ध (सफ़बस्ता) खड़े होंगे। सब पर हेबल छाई होगी और किसी की यह मजाल न होगी कि बिना इजाज़त बोल सके।
- इस से अभिप्राय सिफारिश के गलत विचारों का खण्डन है जिस में धार्मिक लोग जकड़े हुऐ हैं। जहाँ तक मुत्रिकीन का सम्बन्ध है वह यह ख़याल करते हैं कि अगर क़यामत आ ही गई और कर्मों की जवाबदेही के लिए अल्लाह की अदालत में हाज़िर होना ही पड़ा तो यह देवी देवता जिन की वह पूजा करते रहे हैं वह हमारे सिफ़ारिशी बन कर खड़े होंगे और हमें अज़ाब (यातना) से छुटकारा दिलवा के रहेंगे। लेकिन कुआंन बताता है कि पहले तो किसी “देवी देवता” का आख़िरत में वुजूद ही नहीं होगा। सब के सब अल्लाह के बेबस बन्दे की हैसियत से पेश होंगे और सारे अधिकार अल्लाह ही के हाथ में होंगे और अल्लाह की अदालत के दबदबे का यह आलम होगा कि निकटस्थ (विशेष, समानित) फ़रिश्ते बात करने की जुअंत न करेंगे अगर सिफ़ारिश के लिए कोई ज़ुबान खोल सकेगा तो वही जिस को अल्लाह इजाज़त दे और इस सूरत में वह ठीक और दुरुस्त बात ही कहेगा और मुश्रिकीन के लिए सिफ़ारिश कोई भी नहीं कर सकेगा क्योंकि ऐसे लोगों के हक़ में सिफ़ारिश करना, अल्लाह के इस फैसले की बुनियाद पर कि जो ऐसे जुर्म में लिप्त रहे जो क्षमा योग्य नहीं, दुरुस्त बात न होगी। अल्लाह की इजाज़त के बाद किसी की सिफ़ारिश के लिए कोई जुबान खोलेगा भी तो सिर्फ़ ऐसे गुनहगार बन्दों के लिए जो ईमान वाले हों और जिन के लिए अल्लाह सिफ़ारिश कुबूल करना पसन्द फ़रमाए। लिहाज़ा कोई व्यक्ति इस भुलावे में न रहे कि वह चाहे कुफ्र और शिर्क (ख़ुदा का इन्कार करने या कई ख़ुदाओं को मानने) का कुसूरवार क्यों न हुआ हो और चाहे उस ने एक सरकश की हैसियत से ज़िन्दगी क्यों न गुज़ारी हो, किसी न किसी के वसीले से उस की मुक्ति हो जायेगी। 27. अर्थात् बदले का दिन अनुमान और अटकल की बातें भी नहीं कर सकेगा क्योंकि ऐसे लोगों के हक़ में सिफ़ारिश करना, अल्लाह के इस फैसले की बुनियाद पर कि जो ऐसे जुर्म में लिप्त रहे जो क्षमा योग्य नहीं, दुरुस्त बात न होगी। अल्लाह की इजाज़त के बाद किसी की सिफ़ारिश के लिए कोई जुबान खोलेगा भी तो सिर्फ़ ऐसे गुनहगार बन्दों के लिए जो ईमान वाले हों और जिन के लिए अल्लाह सिफ़ारिश कुबूल करना पसन्द फ़रमाए। लिहाज़ा कोई व्यक्ति इस भुलावे में न रहे कि वह चाहे कुफ्र और शिर्क (ख़ुदा का इन्कार करने या कई ख़ुदाओं को मानने) का कुसूरवार क्यों न हुआ हो और चाहे उस ने एक सरकश की हैसियत से ज़िन्दगी क्यों न गुज़ारी हो, किसी न किसी के वसीले से उस की मुक्ति हो जायेगी।
- अर्थात् बदले का दिन अनुमान और अटकल की बातें नहीं है बल्कि एक वास्तविकता और सत्य है जिस की ख़बर पूरी सच्चाई के साथ तुम्हें दी जा रही है।
- क़रीब इस हिसाब से कि दुनिया की अधिकतर उम्र गुज़र चुकी है अब क़ियामत के आने में जो समय बाक़ी रह गया है वह बहुत ही थोड़ा है। वैसे भी समय एक सम्बन्धी (Relative) वस्तु है। क़ियामत के दिन जब कि ज़मान-व-मकान (Space & Time) के पैमाने बदल जाऐंगे । इन्सान ने जो वक्त दुनिया में गुज़ारा था उसे बहुत थोड़ा मालूम होगा।
- इन्सान दुनिया में अच्छे बुरे जो काम भी करता है अवश्य ही उस का एक परिणाम और एक प्रभाव है जो दूसरी ज़िन्दगी (आख़िरत) में जाहिर होगा। इस हक़ीक़त को “मा क़द्दमत् यदाहु” مَا قَدَّمَتْ يَدَاهُ )जो उस के हाथों ने आगे भेजा( के शब्द से दर्शाया गया है। क्यों कि इन्सान का हर अमल उस के अपने हाथों से बीज बोने जैसा है जिस के फल वह आने वाली ज़िन्दगी में काटेगा
- अर्थात् जो लोग बदले के दिन को मानने और उस की बुनियाद पर ज़िम्मेदाराना ज़िन्दगी गुज़ारने से इन्कार कर रहे हैं वह अच्छी तरह समझ लें कि बदले का दिन) बरपा होगा और इन्सान अपने करतूत अपने सामने देख लेगा तो ऐसे लोगों के हिस्से में सिवाय हसरत और पछतावे के कुछ नहीं आयेगा. उस समय आख़िरत का इन्कार करने वाले हर आदमी को एहसास होगा कि काश वह मर कर मिट्टी में मिल गया होता और हिसाब देने की नौबत ही न आती।