पी चिदंबरम और बैरिस्टर ओवैसी,मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड,विपक्ष कर रहा है खुला विरोध , तो विश्व हिंदु परिषद व पीआईएल मैन कर रहे हैं समर्थन
भाजपा ने समान नागरिक संहिता के लिए जो तैयारियां की हैं उसे जानकर चौंक जायेगा विपक्ष
दिल्ली /रापप्र/ रिपोर्टों के मुताबिक, प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद सरकार में उच्च स्तर पर बैठकों का दौर शुरू हो गया है। गृह मंत्री अमित शाह ने इस संबंध में कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल से चर्चा भी की है। इस तरह की भी खबरें हैं कि समान नागरिक संहिता संबंधी विधेयक संसद के मॉनसून सत्र में लाया जा सकता है। यदि ऐसा होता है तो निश्चित ही यह सत्र हंगामेदार रहेगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की पुरजोर वकालत करते हुए सवाल किया है कि ‘‘दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चलेगा?’’ प्रधानमंत्री ने कहा है कि इस संवेदनशील मुद्दे पर मुसलमानों को उकसाया जा रहा है। मोदी ने कहा कि विपक्ष समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के मुद्दे का इस्तेमाल मुस्लिम समुदाय को गुमराह करने और भड़काने के लिए कर रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतीय मुसलमानों को यह समझना होगा कि कौन-से राजनीतिक दल उन्हें भड़का कर उनका फायदा लेने के लिए उनको बर्बाद कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि एक घर में परिवार के एक सदस्य के लिए एक कानून हो, दूसरे के लिए दूसरा, तो क्या वह परिवार चल पाएगा। फिर ऐसी दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चल पाएगा? उन्होंने कहा है कि हमें याद रखना है कि भारत के संविधान में भी नागरिकों के समान अधिकार की बात कही गई है।
दूसरी ओर, प्रधानमंत्री के बयान पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं आना शुरू हो गयी हैं। कोई समर्थन कर रहा है तो कोई विरोध। एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने आरोप लगाया है कि प्रधानमंत्री ‘‘हिन्दू नागरिक संहिता’’ लाना चाहते हैं।
इसके अलावा पूर्व गृह मंत्री पी. चिदम्बरम का यह कहना चौंकाता है कि ‘एजेंडा आधारित बहुसंख्यक सरकार’ समान नागरिक संहिता को लोगों पर थोप नहीं सकती क्योंकि इससे लोगों के बीच ‘विभाजन’ बढ़ेगा।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड,ने कहा कि समान नागरिक संहिता न सिर्फ नागरिकों के धार्मिक अधिकारों का हनन है बल्कि यह लोकतंत्र की मूल भावना के भी खिलाफ है, उसको देखकर लगता यही है कि यही सब वह विधि आयोग के समक्ष भी कहेगा।
विश्व हिन्दू परिषद ने समान नागरिक संहिता पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बयान का समर्थन करते हुए कहा है कि एक समान कानून 1400 साल पुरानी स्थिति से वर्तमान में लायेगा। विहिप ने समान नागरिक संहिता के विषय को नारी सम्मान से जोड़ते हुए सवाल किया कि जब आपराधिक कानून, संविदा कानून, कारोबार से जुड़े कानून एक समान हैं तब परिवार से जुड़े कानून अलग क्यों हों? विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के अंतरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष आलोक कुमार का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 44 में सभी सरकारों को यह निर्देश दिया गया है कि वह एक समान नागरिक संहिता बनाने का प्रयास करें। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे आश्चर्य है कि संविधान बनने के 73 साल बाद जो सांसद और विधायक संविधान के प्रति सच्ची निष्ठा रखने की शपथ लेते हैं, वे इसका पालन नहीं कर सके।’’ विहिप के कार्याध्यक्ष ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने भी सरला मुद्गल एवं अन्य के मुकदमे में कहा कि अलग-अलग नागरिक संहिता ठीक नहीं है।
आलोक कुमार ने कहा कि जब देश में आपराधिक कानून एक हैं, भारतीय संविदा कानून (कॉन्ट्रैक्ट लॉ) एक हैं, वाणिज्यिक कानून एक हैं, कारोबार से जुड़े कानून एक हैं, तब परिवार संबंधी कानून अलग-अलग क्यों हैं? उन्होंने कहा कि 1400 साल पुरानी स्थिति अलग थी और उस समय की परिस्थिति में बहु विवाह की प्रथा आई, वह तब की जरूरत हो सकती है। ‘‘समय बदला है। नारी की गरिमा और समानता की बात सभी को स्वीकार करनी चाहिए। वह (नारी) पुरुष की सम्पत्ति नहीं है।’’ उन्होंने कहा कि ऐसे में किसी तरह के भेदभाव को समान नागरिक संहिता से दूर किया जा सकता है। आलोक कुमार ने कहा कि तलाक के नियम सभी के लिए एक से हों और केवल मौखिक कह देने से तलाक नहीं दिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि तलाक की स्थिति में गुजारा भत्ता की व्यवस्था की जानी चाहिए तथा बच्चों की परवरिश की चिंता की जानी चाहिए। आलोक कुमार ने कहा कि एक समान कानून हमें 1400 साल पुरानी स्थिति से वर्तमान में लायेगा। उन्होंने कहा ‘‘ऐसी अपेक्षा की जाती है कि सभी धर्मों से अच्छी बातें ले कर एक ऐसा कानून बनेगा जो सभी के लिए जो अच्छा होगा।’’
पीआईएल मैन की चुनौती–बहरहाल, उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और भारत के पीआईएल मैन के रूप में विख्यात अश्विनी उपाध्याय ने इस मुद्दे पर बहस की खुली चुनौती दी है। उनका यह भी कहना है कि संविधान अर्थात सम विधान अर्थात समान विधान। उपाध्याय ने समान नागरिक संहिता की बजाय भारतीय नागरिक संहिता नाम भी सुझाया है। उन्होंने कहा है कि भारतीय नागरिक संहिता लागू होने से विवाह की न्यूनतम उम्र समान होगी, तलाक का आधार एक समान होगा, तलाक की प्रक्रिया एक समान होगी, गुजारा भत्ता का अधिकार सबको मिलेगा, बच्चा गोद लेने का अधिकार सबको मिलेगा, भरण-पोषण का अधिकार भी सबको मिलेगा और विरासत-वसीयत का अधिकार भी सबको मिलेगा।