एक पुरखुलूस मुस्लिम नौशाद अ़ली साहब ने मौलाना सज्जाद नोमानी के उस बयान का माकूल और दो टूक जवाब दिया है जिसमें उन्होंने मुसलमानों को वोट डालने का $फतवा शरीअ़त के नाम पर दिया है और वोट न डालने वालों को मुजरिम और अल्लाह के यहाँ पकड़ होने की बात की है। शरीअ़त के नाम पर गैऱ शरई फतवा देकर कौ़म को गुमराह करने के $िखलाफ पुर$खूलूस मुस्लिम नौशाद अ़ली साहब ने मौलाना सज्जाद नोमानी को इस्लाही $खत लिखा है जिसकी तहरीर इस तरह है:-
अस्सलामोअलैकुम…..
मोहतरम जनाब आपके ज़रिये जारी किये गये कई वीडियोज़ देखने का इत्तिफाक हुआ जिसमें आपके ज़रिये मुसलमानों को वोट डालने की तरगीब दी गई है। अगर ये इज़तिरारी कै$िफयत के तहत होता तो शायद गुंजाइश निकल सकती थी लेकिन आपने जब वोट न डालने वाले मुसलमानों को अल्लाह के यहाँ पकड़ होने व मुजरिम होने की बात की तो लगा कि जुमला किसी अ़ालिम का न होकर किसी जाहिल या बिचौलिये का ही हो सकता है। /जाहिल या बिचौलिया ल$फ्ज़ का इंतिखा़ब मैने जान बूझकर किया है, आपके उस लफ्ज़ के बदले जिसमें आपने वोट न देने वाले को अल्लाह के यहाँ मुजरिम कहा है/।़ मुझे नहीं मालूम आपने ये फतवा क्यों दिया , व क्या दलील है आपके पास।़ आपने कुरआन की आयत को कोड किया है अपनी दलील के तौर पर जो कि सरासर तहरीफ है । आप अपने इस अ़मल के लिये अल्लाह से मा$फी मांगे या इस्त$ग$फार करें। क्योंकि आप तागूती निज़ाम के निफाज़ के लिये मुसलमानों को डरा रहे हैं। आपके इल्म में इख़्वान का हश्र होगा? जिसने मिश्र में ये अमल किया के एक हाथ में जम्हूरियत का अलम , और दूसरे हाथ में इस्लाम का परचम उठाकर इंति$खाब /चुनाव/लड़ा ।़ जीते व जल्द ही नाकाम हो गये। दूसरी तरफ तालिबान हैं जिन्होंने लड़ा मिस्वाक व तस्बीह के साथ-साथ हथियारों से।़ और दुनिया ने देखा वे कामयाब हो गये। तागूत की सारी हिकमतें व साजि़शें नाकाम हो गयीं।
मौलाना काँग्रेस की मैम्बरशिप का जो फार्म होता है उसमें मेरी मालूमात की हद तक उसमें मैम्बर के लिये शर्त होती है कि एक मैम्बर की हैसियत से उसका कोई मज़हब नहीं होगा।़ यानी वो बेदीन होगा यानी मज़हब उसका जा़तीय फै़ल होगा , पार्टी में वो बेदीन/धर्मनिर्पेक्ष/ होगा,मंदिर, गुरूद्वारे, मज़ारों पर उसे जाना होगा, मरे हुए लोगों की कब्रों पर जाकर फूल चढ़ाने होंगे ।़
आपको याद दिला दूँ अभी हाल ही में इंडिया में एक फग्शन के दौरान तुर्की, बंगलादेश, व दीगर मुस्लिम मुल्कों के हुक्मरान गाँधी जी की कब्र पर गए थे व फूल डाले थे, इसके बरअक्स सऊदी शेख दिल्ली में मौजूदगी के बावजूद वहाँ नहीं गए । आपके मुताबिक इनमें से कौन सही है कौन ग़लत ??
मौलाना वो सांसद जिन्हें हम चुनकर पार्लियामेंट भेजते हैं वो संसद में जाकर शराब, जि़ना, व लिव इन रिलेशन, व जुआ,सट्टा को जाइज़ करने के लिये कानून बनाते हैं यानी अल्लाह के हुक्म के शरई $िखला$फ व इस्लामी रूह के ऐन मनाफ़ी ।़ और आप जैसा अ़ालिम इसके बावजूद वोट न देने वाले को मुजरिम कहता है, तो ये सवाल उठता है कि आपका इल्म क्या है ??? या आप किन लोगों से डरकर उम्मत को डरा रहे हैं ।
मौलाना साद साहब ने एक जुमले में सारी बात को समेट दिया है कि:- हुकूमत बदलने से हालात नहीं बदलेंगे।़।़ बल्कि अ़ामाल बदलने से हालात बदलेंगे।़।़ सुबहान अल्लाह।़
और मौलाना आप बीजेपी को हटाकर किसको इक़्तेदार में लाना चाहते हैं??? काँग्रेस को जिसने पिछले 60 सालों से ज्य़ादा हुकूमत करके मुसलमानों को दलितों से बदतर हालात में पहुँचा दिया। कितनी मुलाजि़मतों में थेे मुसलमान आज़ादी के वक़्त? कितने दंगे कराए गए मुल्क में? यूपी, बंगाल, बिहार,महाराष्ट्र, कितने सूबे गिनाऊँ जहाँ फसादात के ज़रिये हमें तबाह व बर्बाद किया गया ? 2000 के गुजरात फसाद के बाद अगर मुज़$फ्$फरनगर यू पी का जहाँ अ$िखलेश की हुकूमत थी :मुसलमानों के एक और मसीहा। इसके अलावा इन 24 सालों में इंडिया में कहाँ दंगे हुए ? आप किन लोगों को वोट देने के लिये कुरआन को कोड कर रहे हो ? शर्म आनी चाहिये। आपको व आप जैसे दीगर उलेमाओं को ।
अल्लाह ने हमसे बेईमानों से दिली दोस्ती न करने को कहा है। और हम एक राज्यसभा सीट लेकर इनके लिए काम करें? शर्म आनी चाहिये।़
मुसलमानों को मुजरिम कहने वालों -मुझे पूरा यकीन है कि अल्लाह के यहाँ इस मुताल्लिक जब आपसे सवाल किया जाएगा तो आपके पास इसका कोई जवाब नहीं हो सकता।़।़
आपको ये नहीं कहना चाहिये के उम्मत के उलेमाओं का ये इज्तिमाई फैसला और इज्तेमाइयत के साथ रहना हमारे लिये ज़रूरी है। तो गैऱ शरई इज्तिमाइयत की शरीयत में कोई असल नहीं है। बीजेपी जो कर रही है वो सिर्फ सियासत का एक पार्ट है । वो ऐसी पार्टी है जिसके पीछे व आगे आर एस एस खड़ी है जो हर मौक़े के लिये कई -कई ताबीरें व तरकीबें रखती है। यानी प्लान । मुसलमानों की तरह नहीं के हर बार हर मौक़े पर सिर्फ हंगामी हालात में जागें और वक्त़ गुज़रने के साथ सो जाएँ।़?
मौलाना 1924 में $िखला$फत खत्म हुई , 1925 में आर एस एस का $कयाम अमल में आया, 100 साल की मेहनत के बाद आज वो इस मुकाम पर हैं कि सब कुछ उनके हाथ में है । इसके कुछ अर्से बाद तबलीग़ी जमात वुजूद में आई, उन्होंने अपनी लाइन पर मेहनत की । कितने इख़्तेलाफात के बावजूद अपने मकसद में लगे रहे , आज दुनिया का कौन सा $िखत्ता है जहाँ जमात काम नहीं कर रही?
दो जमातें इस मुल्क की जिसकी मिसाल मैने दी। दोनों अपने मकसद में कामयाब।़ जिसकी मेहनत जिस नतीजे के लिये ,वो उसमें कामयाब और आप जैसे आलिम हमें वक़्तीय तौर पर जगाएँ , डराएँ और $िफर सो जाएँ।? ये आपकी मुजरिमाना कोशिश है। और सोशल मीडिया के दौर में आप वक़्तीय तौर पर जाहिल मुसलमानों को सडक़ों पर ले जाओगे , उन्हें देखकर ,उनकी वीडियो बनाकर और अपने लोगों को दिखाकर सामने वाला कामयाब हो जाएगा। ? और 20 या 30 करोड़ का दम भरने वाले 80 करोड़ से हार जाएँगे ।। और आप और ओवैसी जैसे लोग आर एस एस के लिये हथियार हैं । हम खा़मोश मेहनत व इस्तेकामत से जमे रहने के हिमायती हैं। आ$िखरी सवाल:-कितने मुसलमानों को इन पार्टियों ने टिकिट दिये हैं? क्या हम सिर्फ बंधुआ मजदूर हैं ?? कि वो पार्टियाँ हमारा वोट तो लें, और सहूलियतें गैऱों को दें??? जवाब चाहिये, जलेबियाँ नहीं।़।़
जब आप बीजेपी पे आरोप लगाते हो कि वो मुसलमानों को टिकिट नहीं देती , तो वही अमल जब आप करते हो मुसलमानों को टिकिट देने से घबराते हो तो आप से क्या कहा जाए? आपसे क्यों सवाल न किया जाए??? इस तरह से आप भी इस वक़्त बीजेपी की पिच पर ही खेल रहे हैं।
मौलाना/नोटा/ इलैकशन कमीशन लाया है क्यों? इसलिये कि अगर आप खड़े हुए उम्मीदवारों को पसंद नहीं करते तो नोटा का इस्तेमाल करो।़ यानी कोई नहीं चाहिये।़ उसने ऐसा क्यों किया? शायद ये सोचकर कि कहीं गलत इंसान का इंतिखाब/चुनाव/ न हो जाए।़ आप जिनके लिये हमसे गवाही दिलवा रहे हो वो सब मक्कार हैं । अभी हालिया दिनों में उन सब की वफादरियाँ खुलकर सामने आ गईं। जो सिर्फ अपने जा़तीय म$फाद के लिये इधर से उधर , उधर से इधर गए । आप इन जैसे लोगों के लिये हमें मुजरिम $करार दे रहे हो??? अल्लाह के यहाँ ये नोटा हुज्जत है। अल्लाह के यहाँ आप जैसे लोगों के लिये कि ये निज़ाम जब तुम्हें मोहलत दे रहा था वोट न देने के लिये उस वक़्त आप जैसे लोग वोट न डालने वालों को बता रहे थे कि उनकी अल्लाह के यहाँ पकड़ होगी?
डाक्टर इसरार साहब इस निज़ाम के $िखलाफ़ पूरी जि़ंदगी लड़ते रहे पाकिस्तान में और इस जम्हूरी निज़ाम को कु$िफे्रया निज़ाम कहते रहे , यहाँ तक के अपने रफीकेअ़ाला के पास चले गए ।़ वो आपकी नज़र में मुजरिम थे? ? या नहीं??? का़बिले गिरफ्त थे , या नहीं???? एक अ़ालिम की हैसियत से आप ये खूब अच्छी तरह से जानते होंगे कि जब फुक़हा की आरा किसी एक मसले में मु़ख़्तलिफ हो तो /आमी/ को इख़्ितयार है कि वो किसी एक की राय को कुबूल कर ले, क्योंकि इज्हिाद की बिना पर दोनों को एक व दो दर्जा सवाब है। इसलिये कहा जाता है कि इल्म बगैऱ गौऱ व $िफक्र के बेमानी है। शिद्दत नहीं दलाइल चाहिये।़ अगर आपके पास दलीलें हैं तो सामने वाला भी दलाइल रखता है।
……लेखक:- नौशाद अ़ली
7000063583
मौलाना सज्जाद नोमानी के बयान के $िखलाफ जवाब
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