—-क़मर सिद्दीक़ी
मर्ज़ ला इलाज है
ख़बर है कि,एमपी भाजपा में मेजर सर्जरी,अर्थात,एक बड़ी शल्य चिकित्सा होने जा रही है। मरीज़ टेबल पर, एनेस्थेसिया भी लगभग दिया जा चुका है। बड़ा बढ़िया शेर है,
“चंद सांसों के सिवा कुछ नहीं बीमार के पास,आप क्यों आ गए गिरती हुई दीवार के पास”। या फिर यूं भी कहा जा सकता है कि,” बहुत देर कर दी, हुज़ूर आते-आते। ये फ़ैसला बेचारे “कर्नाटक” की “मौत” के बाद लिया गया है। इस कर्नाटक की मौत की ज़िम्मेदारी,डॉक्टर बी.एल.संतोष पर आयद की गई है,क्योंकि कर्नाटक का इलाज इन्हीं के सुपरविजन में चल रहा था। खैर मौत पर किसका ज़ोर चला है।
रही एमपी की बात तो,अगर दिल की दवा की जाए तो,किडनी डिस आर्डर हो जाती है,और अगर किसी तरह किडनी को संभाला जाए तो, फेफड़े सिकुड़ने लगते हैं। वैसे इसको सर्जरी कहना सही नहीं होगा,बल्कि इसे प्रत्यार्पण या ट्रांस प्लांट कहा जा सकता है। दरअसल “नागपुर” वाले धुरंधर डॉक्टरों की टीम भी मर्ज़ को पकड़ ही नहीं पा रही,या फिर उनके पास इसका कोई माक़ूल इलाज ही नहीं है। यहां मरीज़ के सारे अंग तो काम कर रहे हैं,लेकिन उनमें आपस में “सामंजस्य” नहीं बैठ पा रहा है,उस पर फ़र्ज़ी योजनाओं,और भ्रष्टाचार की बद परहेज़ी! फेफड़े दिल को धक्का दे रहे हैं,तो किडनी आंतो को खींच रही है। अब शरीर के सारे मुख्य अंगों का प्रत्यार्पण तो होने से रहा,और समय भी कम है,इसलिए मरीज़ के बचने की उम्मीद तनिक कम ही लगती है।
दिल्ली अभी दूर,और अभी से ये गर्मी!
कांग्रेसी ये मान बैठे हैं कि,20 साल का सूखा,या वनवास समाप्त होने जा रहा है। इसीलिए हर छुटभैया भी कॉलर खड़ा किये पीसीसी में घूमता नज़र आ जाता है। ये सब से पुरानी पार्टी है,55 वर्ष से अधिक समय तक देश में राज किया है,ज़ाहिर बात है इतनी लंबी मुद्दत के बाद यहां नेताओं की भरमार है। आपको हर तीसरा व्यक्ति नेता ही मिलेगा,हां कार्यकर्ता ढूंढने के किये आपको चराग की आवश्यकता पड़ेगी।
वैसे तो गर्मी के मौसम में बे वक्त की बारिश से राहत मिली हुई है,पर पीसीसी के अंदर इतनी गर्मी है कि,प्रवक्ता,नेता तो दूर एक चपरासी भी सीना और नाक फुलाए आते-जाते लोगों को घूरता रहता है। ज़रा सोचिए कि,जब कुछ नहीं है तब ये हाल है,अगर सत्ता मिल गई तो ये तो नंगे हो कर नाचेंगे! इससे 1.5 किलोमीटर भाजपा कार्यालय है। उनके पास सत्ता,धन,बल सब कुछ है,मगर उसके बावजूद उनके अंदर ऐसी गर्राहट नहीं है,जैसे इन भूखे नंगों में है। वहां हर आगंतुक को चाय-पानी के लिए पूछा जाता है,भले वो अनजान ही क्यों न हो। ये तो अपने2 संस्कार की बात है। किसी ने बताया कि,पीसीसी का एक चपरासी किसी नए पत्रकार से उसका कार्ड मांग रहा था,ये बात और है कि,उस चूतिये को ख़ुद पढ़ना नहीं आता। अगर कोई पत्रकार गर्मी से बचने के लिए एक पल एसी रूम में बैठ जाए तो,इनको सफोकेशन होने लगती है। पत्रकारों को भी चाहिए कि,जब पत्रकार वार्ता हो तो ये जो मौसमी कीड़े कलफ़ दार कुर्ता-पायजामा पहन कर सामने बैठ जाते हैं,उनका कार्ड भी मांगें,तब पता चलेगा इनमें कितने सटोरिये,और कितने कच्ची शराब बेंचने वाले हैं।
ये बिके हुए प्रवक्ता सरकार बनाएंगे,जो सत्ता पक्ष की दलाली पर ऐश कर रहे हैं। ख़ुद तो कुछ करते नहीं,और अगर कोई पत्रकार सत्ता के खिलाफ मुद्दा दे तो खामोशी इख्तियार कर लेते हैं क्यों? महाकाल में इतना बड़ा भ्रष्टाचार हो गया,एक प्रदर्शन,धरना? कहीं कुछ नहीं। कल्पना कीजिये अगर यही काम इनकी सरकार में होता तो,वो इनका जीना हराम कर देते। निगम नेता प्रतिपक्ष,और उनके पति पर जान लेवा हमला हुआ,किसी नेता,किसी कांग्रेसी पार्षद को थाने का घेराव करते देखा?
ये ऐसी पार्टी है,जो विपक्ष से लड़ने के बजाए अपनो को ही निपटाने में दक्ष है।
चलते-चलते
नए भोपाल के बिठ्ठन मार्केट में आमों की नुमाइश लगी है।
यहां आमों की बेहतरीन नस्लें देखी जा सकती हैं। इन्हीं नस्लों में से दो आपत्तिजनक नाम के आम भी रखे गए हैं,एक मल्लिका,और दूसरा नूर जहां। कितने ताज्जुब की बात है कि,अभी तक इन मुगलिया नामों को लेकर किसी की भावनाएं आहत नहीं हुईं,न संस्कृति ख़तरे में आई,और न ही कोई धरना,प्रदर्शन! नूर जहां यानी अकबर की बहू,और मल्लिका यानी रज़िया सुल्तान,ये तो विदेशी आक्रांताओं के नाम हैं। ताज्जुब इसलिए भी कि,चुनाव सर पर है,और सर्वे विपरीत।कार में होता तो,वो इनका जीना हराम कर देते। निगम नेता प्रतिपक्ष,और उनके पति पर जान लेवा हमला हुआ,किसी नेता,किसी कांग्रेसी पार्षद को थाने का घेराव करते देखा?
ये ऐसी पार्टी है,जो विपक्ष से लड़ने के बजाए अपनो को ही निपटाने में दक्ष है।
चलते-चलते
नए भोपाल के बिठ्ठन मार्केट में आमों की नुमाइश लगी है।
यहां आमों की बेहतरीन नस्लें देखी जा सकती हैं। इन्हीं नस्लों में से दो आपत्तिजनक नाम के आम भी रखे गए हैं,एक मल्लिका,और दूसरा नूर जहां। कितने ताज्जुब की बात है कि,अभी तक इन मुगलिया नामों को लेकर किसी की भावनाएं आहत नहीं हुईं,न संस्कृति ख़तरे में आई,और न ही कोई धरना,प्रदर्शन! नूर जहां यानी अकबर की बहू,और मल्लिका यानी रज़िया सुल्तान,ये तो विदेशी आक्रांताओं के नाम हैं। ताज्जुब इसलिए भी कि,चुनाव सर पर है,और सर्वे विपरीत।
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