जो भारत जोड़ो का नारा दे रहे थे वो *इंडिया * में आ गए
और जो इंडिया इंडिया चिल्ला रहे थे अब वो भारत का राग अलाप रहे हैं
वो काँग्रेस जिसे घमंड था अपने आपके सबसे बड़ा संगठन होने का , जिसे गुरूर था के किसी अन्य तीसरे मोर्चा या गठबंधन की उसे आवाश्यकता नहीं वो अपने दम पर 2024 का चुनाव जीतेगी– इसी बयान के साथ राहुल ने पूर्व में चल रहे तीसरे मोर्चे के प्रयासों में चल रही मीटिंग में सम्मिलित होने के लिये मना कर दिया था और भारत जोड़ो यात्रा का अव्हान किया था ,मगर जब ज़मीन पर आए तो पता चला के जो बोया है उसी की फसल काटना पड़ रहा है, अब अगर सही पैदावार चाहिये तो किसानों व खेतिहर मजदूरों बनाम क्षेत्रिय पार्टियों का सहारा लेना ही पड़ेगा , यानी काँग्रेस ने मान लिया कि अब अकेले उसके बस की नहीं वो लगभग 70 साल बूढ़ी पार्टी हो चुकी है बिना टेकी के उसका मैदान में टिकना भी मुश्किल है इसलिये राहुल /काँग्रेस/ को मजबूरन गठबंधन में शामिल होने का निर्णय लेना पड़ा। यानी भारत जोड़ो की यात्रा करते करते इंडिया के प्लेट फार्म पर आ गए। लेकिन अभी भी आजिज़ी के साथ नहीं बल्कि यहाँ भी कुछ दलित, ओबीसी,मुसलमान नाम के संगठनों, को शायद इसीलिये नहीं बुलाया गया कि काँग्रेस को वो पसंद नहीं। जबकि पूर्व में भाजपा समर्थित एन डी ए गठबंधन में शमिल दलों व उनके नेताओं को अहमियत दी गई। यानी प्रदेश में राज्य लेबल पर अल्पसंख्यक नेताओं को नज़रअदाज़ किया गया है तो देश में राष्ट्रीय लेबल पर अल्पसंख्यक दलों या पार्टियों , दलित पार्टियों, मूल निवासी संगठनों को अहमियत ही नहीं दी गई और यदि इसी पर 2024 के चुनाव हो गये तो यकीऩी तौर पर भाजपा ही केन्द्र में फिर से सरकार बना सकती है।
कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता एवं पूर्व राज्यपाल श्री अ़ज़ीज़ कुरैशी इस समय काँग्रेस के हिंदुत्व एजेंडे से क्रोधित नज़र आ रहे हैं यही वजह है कि उन्होंने वर्तमान में काँग्रेस के प्रति बड़े तीखे बयानों में स्पष्ट कहा है कि *काँग्रेस अल्पसंख्यकों को नज़रअंदाज़ कर रही है और ** काँग्रेस को पूंजिवादियों की पार्टी भी कहा है ।
जब बुरहानपुर में एक अल्पसंख्यक नेता को दिगविजसिंह ने स्टेज से उतारा था उसी समय से काँग्रेस के मुसलमान नाम के अक्सर नेता ये समझ गए थे कि अब काँग्रेस अपने आपको बड़ा हिंदुत्व वादी साबित करने की कूटनीतिक चाल चल रही है लेकिन उसके बाद एक अधिवेशन में जब वरिष्ठ अल्पसंख्यक नेताओं को मुसलमाहन नाम होने की वजह से नज़रअंदाज़ किया गया भोपाल के तथाकथित दोनों मुसलमान एम एल ए एवं पूर्व राज्यपाल श्री अज़ीज़ कुरैशी को भी जब स्टेज पर नहीं बुलाया गया तो भी स्पष्ट हो गया कि काँग्रेस अब हिंदु कार्ड खेल रही है। मुसलमानों को तो बस झेल रही है क्या फिर भी काँग्रेस मुसलमानों की मजबूरी है?? हालांकि शायद/संभवत:/- बाबरी की बद्दुआ ने उसे सत्ता से दूर रखा हैऔर मसलमानों के तमाशबीन बने रहने और अल्लाह के घर को राजनीतिक हथकंडा बनाने वाली पार्टी का साथ देने की वजह से अल्लाह तअ़ाला ने उनपर तथाकथित ज़ालिम बादशाह की शक्ल में बीजेपी को मुसल्लत कर दिया है ।
काँग्रेस अब छटपटा रही है के कैसे सत्ता में वापसी की जाए, और अधिकतर अल्पसंख्यक बनाम मुसलमान वोटर्स हमारा राजनीतिक गुलाम और मोहरा तो है ही , बस बहुसंख्यक हिंदुओं को खुश करके ही सत्ता स्वार्थ सिद्ध किया जा सकता है तो अब लगी है शिव का सहारा, हनुमान की शरण, गणेश की ईश भक्ति का हथकंडा इस्तेमाल करके अपने आपको अधिक कट्टर हिंदुवादी अथवा हिंदुत्ववादी साबित करने।
लेकिन आदिवासी, मूलनिवासी, अल्पसंख्यक और मुसलमानों को नज़रअंदाज़ करना काँग्रस या तथाकथित इंडिया गठबंधन के लिये बहुत घातक हो सकता है , क्योंकि इस डिजिटल मीडिया और मोबाइल के दौर में जब भाजपा और उसके समर्थक किसी एक मुसलमान नाम के को भी निशाना बनाते हैं तो उसे काँग्रेस आई टी सेल और जुम्मन जुगाड़ु इतना उछालते हैं के लगता है बीजेपी कत्लेआम करा रही है लेकिन काँग्रेस सत्ता के दौर में जब इंटरनेट का दौर नहीं था तब मुसलमानों का जो थोक में नरसंहार /नस्लकुशी करवाई गई वो क्या थी
भिवंडी, मेरठ ,भागलपुर, मुरादाबाद ईदगाह /दूसरा जलियाँवाला हत्याकांड में मुसलमानों की नस्लकुशी के बावजूद तथाकथित मुसलमान काँग्रेस का ही अंडभक्त बना हुआ है …..???
काँग्रेस ग्राउंड लेवल पर बहुत कमज़ोर हो चुकी थी, उसने एक मज़बूत विपक्ष तक का रोल अदा नहीं किया, चुनाव से पहले ही थोड़ी मुखर होना शुरू हुई और अब अपने आपको कट्टर हिंदुत्व वाली साबित करने में लगी है। एक तरफ म.प्र. पी सी में हनुमान चालीसा पाक करवाया जाता है तो वहीं नैशनल लेबल पर राहुल राजीव फीरोज़ी नेहरू एक प्रेस काँफ्रेस में अपने आपको बड़ा शिव भक्त कहते हैं , प्रियंका का भी यही हाल रहा वो मज़लूम महिला पहलवानों में जाकर बैठ गईं, यू पी में एक पीडि़त हिंदु परिवार से मिलने चली गईं लेकिन मज़लूम और पीडि़त मुसलमानों से मिलने की बात तो दूर उनके बारे में बात करने से भी कतराती रहीं । हाँ अभी चुनाव नजदीक आ गए और मुस्लिम वोट बैंक ही सबसे बड़ा और सबसे बेवकूफ़ वोटर्स समझा जाता है इसलिए नूह के मामले में या एकाध किसी अन्य मामले में बयान देने तक ही सीमित रहे काँग्रेसी।
शायद इसलिये देश के अनुभवी और रणनीतिकार विश्लेषक ये कहने लगे हैं कि राहुल और कमलनाथ चुनावी मैदान में भाजपा का मुक़ाबला उसी की शैली से करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। शायद अब उनके ये ममझ में आई हो कि लोहे को लोहे से ही काटा जा सकता है। इसलिए उन्होंने भाजपा के कूटनीतिक ,मज़बूत और प्रखर संगठन का मुका़बला करने के लिए प्रत्येक प्रदेश कांग्रेस संगठन को मज़बूत करने पर फोकस किया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि पिछले दो दशक में पहली बार मप्र में कांग्रेस ग्राउंड लेवल पर एकजुट नजऱ आ रही है क्योंकि कर्नाटक के मुकाबले में कमलनाथ का नाटक फीका नज़र आ रहा था। दिग्विजय के लगातार उकसाऊ बयान हिंदुओं को आरएसएस और भाजपा के प्रति और भी उत्साहित कर रहे थे।
शायद यही वजह है कि कांग्रेस आलाकमान ने मिशन 2023 के लिए कमलनाथ को म.प्र. में पूरी तरह फ़्री हैंड कर दिया है। इसलिए वो अपने तरीक़े से चुनाव की तैयारी में जुटे हुए हैं। क्योंकि, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ भली-भांति जानते हैं कि उनका मुक़ाबला कैडर बेस पार्टी भाजपा और उसके पीछे मज़बूती से खड़े आरएसएस से है। शायद यही कारण है कि कमलनाथ ने भाजपा से उसी के अंदाज़ में मुक़ाबला करने के लिए ज़मीनी स्तर पर मेहनती और विरोधी दल से लडऩे वाले कार्यकर्ताओं की फ़ौज खड़ी करने पर सबसे अधिक ज़ोर दिया। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भी शायद बखूबी भांप लिया है कि उनके आरएसएस एवं भाजपा के $िखलाफ बयानबाज़ी मात्र से कुछ नहीं होगा बल्कि भाजपा को और ज्य़ादा बल मिल रहा है और चुनाव भी नजदीक हैं तो शायद इसलिए अब उन्होंने भी अब ज़मीनी मुद्दे उठाना शुरू कर दिये हैं और काँग्रेस को ज़मीनी स्तर पर मज़बूत करने के लिए सिंह ने बीएलए से लेकर मंडलम सेक्टर तक को मज़बूत बनाने के लिए जि़लों का दौरा किया। इसका फ़ायदा भी हुआ और पिछले दो दशक में पहली बार प्रदेश में कांग्रेस ज़मीनी स्तर पर मज़बूती से खड़ी हो गई। शायद इसीलिए अब
कमलनाथ भी अब यह दावा कर रहे हैं कि आज म.प. का कांग्रेस संगठन सबसे मज़बूत है। मगर वो ये भी कहते हैं कि कांग्रेस यदि म.प्र. में जीवित है तो ,कमलनाथ के कारण नहीं जो कार्यकर्ता सामने बैठे हैं, उनके कारण जीवित है। कमलनाथ जहां चुनाव की रणनीति, प्रबंधन सहित अन्य कार्य संभाल रहे हैं, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने मैदानी मोर्चा संभाल रखा है। लगातार हार वाली 66 सीटों का विश्लेषण और रिपोर्ट कमलनाथ को सौंपने के बाद अब दिग्विजय सिंह अनुसूचित जाति की के लिए सुरक्षित 35 सीटों पर फोकस कर रहे हैं। यही नहीं दोनों नेता मंडलम- सेक्टर की बैठक भी लगातार ले रहे हैं।
इसी तरह प्रत्येक प्रदेश में काँग्रेस संगठन को मज़बूत करने और उपेक्षा के कारण पलायन कर गए अपने पुराने नेतओं को वाप से लाने में जुटी है , लेकिन घोर उपेक्षा के कारण पलायन कर गए वोटर्स को उसने साधने की और वापस लाने की कोशिश नहीं की जैसा के अब तक के उसके अपने क्रिया कलापों से लगता है तो 2024 में उसकी सत्ता वापसी की बात तो दूर उसके एलायंस तथाकथित इंउिया की सत्ता में एक ठोस विपक्ष के रूप में आना भी दूभर हो जाएगा जैसा कि वर्तमान में काँग्रेस का ये हाल हो गया के मूल विपक्ष तक न बन सकी। क्योंकि अगर वो देश की सोचती तो पारंपरिक वोटर्स जो मूल निवासी हैं , जो दलित हैं जो अल्पसंख्यक और तथा जो तथाकथित मुसलमान वोट बैंक थे उनको अपने सत्ताकाल में उसने उतना नहीं समझा जितना उनका हक था। मुसलमान वोटर्स को वो हर चुनाव जीतने के बाद 1 प्रतिशत भी सरकारी नौकरियों एवं काँग्रेस पार्टी की मुख्य पो्रस्टों एवं संस्थानों में सम्मानजनक स्थान देती तो आज न तो काँग्रेस सत्ता वापसी को तरसी ही बीजेपी सत्ता में आती न ही मुसलमानों को माँबलिंचिंग की जाती न लवजिहाद,आतंकवाद, देशद्रोह इत्यादि आरोपों पर ऐसा शिकार बनाया जाता जैसा कुत्ते किसी बकरी के बच्चे को शिकार बनाते हैं। बीजेपी के सत्ता में आने के पीछे ही काँग्रेस की घणयंत्रकारी नीति एवं जैसे कि श्री अज़़ीज़ कुरैशी जी कह रहे हैं कि पूजीवाद है, बेशक । और परिवारवाद तो काँग्रेस का जैसे मुख्य ध्येय रहा हो इसके पीछे बड़े बड़े $काबिल नेताओं को काँग्रेस खो चुकी है उनको जो देश को सच्ची दिशा दे सकते थे। बाबू जगजीवन राम को काँग्रेस ने किस तरह दरकिनार किया था, उसी तरह बैरिस्टर अ़ब्दुलरहमान अंतुले को सीमेंट घोटाले में फंसाकर परिवारवाद का रास्ता साफ़ कर दिया था क्योंकि भारत की जनता अब्दुलरहमान अंतुले में अगला प्रधानमंत्री की आशा कर रही थी। इससे पहले मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद की क्या कद्र की काँग्रेस ने जब वो काँग्रेस के अध्यक्ष थे तब अध्यक्ष पद से उन्हें किस कारण हटाया गया, किसे देख लिया था उन्होंने शुद्धिकरण अभियान में , क्यों जिन्ना को पाकिस्तान मांगने पर मजबूर किया गया, नेहरू जो उस वक़्त के इंडस्ट्रिएलिस्ट थे जैसे आज अडानी अंबानी हैं उन्हें पीएम के लिये लाया गया था या वो स्वयं पीएम बनना चाहते थे और जिन्ना या कलाम से रास्ता साफ़ कराया गया……..अब्दुल कलाम आज़ाद की किताब कहाँ है?? जिसमें काँग्रेस के प्रति उनके तजुर्बे भी लिखे हैं। ……अंतत: बाबरी का मुद्दा किसने उठाया, ताला किसने खुलवाया, मूर्ति किसने रखवाई, ताला किसने खुलवाया, और बाबरी मङ्क्षस्जद को शहीद करने के लिये आसानी से कारसेवकों को खुली छूट दी गई। क्या congRSS यानी RSS ??
कट्टर हिंदु कौन? काँग्रेस या भाजपा??इंडिया गठबंधन में काँगे्रस क्यों???
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