देश किसी भौगोलिक क्षेत्र में स्थित लोग होते हैं मूर्ख उसे मिट्टी,जंगल,पहाड़,नदी एवम संसाधन समझते हैं।जब आरक्षण होने से किसी को रोजगार मिलता है तो वो देशवासी ही होते हैं फिर किस आधार पर उस देशवासी का विरोध किया जाता है ? इस तथ्य को समझने की जरूरत है।सरकारी नियुक्ति में योग्यता का तर्क दिया जाता है।क्यों नहीं उसी योग्यता के आधार पर सर्वोच्च न्यालय में कालेजियम सिस्टम,राजनीति और बिजनेस में परिवारवाद का,सिफारिश का,घूसखोरी,संसाधन पर कब्जे का विरोध किया जाता है ?
क्योंकि कुछ वर्चस्व वाले शोषक वर्ग समूह के जाति को सिर्फ खुद को और अपने जाति बंधुओं को ही देश मानते हैं।सिक्ख देश नहीं,मुस्लिम देश नहीं,एस सी देश नहीं,ओ बी सी देश नहीं,आदिवासी देश नहीं तो क्या देश सिर्फ मु_ी भर सवर्ण लोग ही भारत देश हैं ?
संसाधनों की पड़ताल होनी चाहिए।जातिगत गणना के साथ साथ देश की कितनी प्रतिशत संपति और संसाधन जिसमें जमीन,जायदाद व्यवसाय,खेल,फिल्म उद्योग किस जाति समूह के पास कितना हिस्सा है इसकी भी गणना होनी चाहिए।
सरकारी नौकरी ही इतनी सूक्ष्म बची है उसमें कौड़ी भर आरक्षण का रोना रोया जाता है।अनपढ़ और भोंदू लोगों के सामने यह हकीकत आनी चाहिए कि देश के संसाधनों और कितनी संपत्ति पर किसका अधिकार है।जितना धन देश के सब आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों ने मिलकर सत्तर साल में नहीं कमाया होगा उससे ज्यादा धन देश के एक अनारक्षित पूंजिपति ने धांधली से कुछ साल में कमा लिया होगा।सरकारी स्तर से किये गये और किये जा रहे आर्थिक लूट की जांच और धन कपड़ होनी चाहिए।अगर बहुमत के आधार पर सत्ता पर काबिज सरकार को अपने लिए अपनी जाति के लिए अपने बहनोई और दामाद के लिए सरकारी धन लूटने में कोई शर्म और भय नहीं है तब आम जनता से बढकर कोई बहुमत नहीं है।आम जनता बेरहम सरकार को धक्का मारकर अपनी रक्षा करे।
संजीव राही सुरजाखेड़ा