प्रचार एवं प्रसार विभाग केन्द्र जमाअत इस्लामी हिन्द चित्तली कब दिल्ली-110006
| हमारा देश इस समय साम्प्रदायिक समस्याओं में घिरा हुआ है और इस को बढ़ावा देने में बाबरी मस्जिद औ रामजन्म भूमि के मसले को खास तौर से गलत ढंग से इस्तेमा किया जा रहा है। ज़रूरत इस बात की है कि देश की सामाजिक राजनैतिक जमाअतें, उन के नेता और बुद्धिजीवी सोच-विचा और आपसी मशवरे से इन मुश्किलों और समस्याओं के ह और देश के निर्माण और उन्नति, कल्याण और भलाई के उपा तलाश करें। लेकिन दुर्भाग्य से हुआ यह कि कुछ नासमझ अदूरदर्शी साम्प्रदायिक तत्वों ने यह मशहूर कर दियादि बाबरी मस्जिद राम जन्म भूमि मन्दिर, तोड़कर बनाई गई थी और वे इस घिनावनी साजिश में लगे हुए हैं कि मस्जिद गिराकर उसकी जगह मन्दिर निर्माण किया जाये। इस मामले अनजान लोगों को तरह-तरह से गुमराह और उत्तेजित कर की कोशिश की जा रही है। इस परिस्थिति में यह अत्यन्न आवश्यक है कि देशवासी सम्बन्धित तथ्यों से भली भांति परिचित हों और जान-माल और इज़्ज़त-आबरू कार नुकसान हो रहा है, उस से देश और देशवासियों को बचाये
बाबरी स्जद जिसे जिना इस्पद बना दिया गया, वास्तव में मुहम्मद जहारुद्दीन बाबर के गर्वनर मीर बाकी सन् १५२८ ई० में में उसे एक खुले प्लाट पर अयोध्या में बनवाय था, जिसका नाम बाबरी मस्जिद रखा गया था। मस्जिद मुख्य द्वार पर लगे हुए पत्थर पर फारसी में भी यही बात लिख हुई है। विश्व हिन्दू परिषद का यह इलज़ाम कि बाबर ने अपं सामने गुप्तवंश के राजा विक्रमादित्य द्वारा बनाये गये मन्दि को तुड़वाकर उसके मलबे से उसी जगह मस्जिद बनवायी र्थ बिल्कुल निराधार है। बाबर कभी अयोध्या गया ही नहीं थ जैसा कि उसकी पुस्तक ‘तुज़्क बाबरी’ से भी मालूम होता है तुज्क बाबरी दस प्रसिद्ध ऐतिहासिक पुस्तकों में से एक है। सभ मान्यता प्राप्त इतिहासकारों ने इसे स्वीकार किया है। पुरातत् विभाग की रिपोर्टों से तो इसका खण्डन होता ही है कि मस्जि को मन्दिर तोड़कर बनाया गया है, इसके अलावा इतिहासका ने भी इस इल्ज़ाम का खंडन किया है।
पुरातत्व विभाग की गवाही
इंडियन जरनल आफ आरकियालोजी १९७६-७७ ई० अयोध्या और उसके आस पास की खुदाइयों की रिपोर्ट दी गर है। रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से यह बताया गया है कि उस सम जकि रामचन्द्र जी की पैदाइश का दावा किया जाता है अयोध्या और उसके आस पास के क्षेत्र में कोई इन्सानी आबा ही न थी। 1
मशहूर अंग्रेजी साप्ताहिक “संडे” ने २७ मार्च से २ अप्रैल १९८८ ई० के अंक में पूर्व डाइरेक्टर जनरल आफ आरकियोलोजिकल सर्वे आफ इंडिया, बी. बी. लाल तथा के एन. दीक्षित के द्वारा की गयी खुदाइयों के नतीजे प्रकाशित किये गये हैं, जो इस कथन का साफ तौर से खंडन करते हैं कि बाबरी मस्जिद किसी मन्दिर को तोड़कर बनाई गयी थी।
इतिहासकारों की गवाहियाँ
लगभग सभी प्रसिद्ध एवं विख्यात मुस्लिम तथा गैर-मुस्लिम इतिहासकारों ने इस आरोप का खंडन किया है कि मन्दिर तोड़कर मस्जिद बनाई गयी थी। मिसाल के तौर पर भूतपूर्व राष्ट्रपति डाक्टर राधा कृष्णन के सुपुत्र तथा जाने माने इतिहासकार प्रोफेसर एस. गोपाल ने १८ दिसम्बर, १९८९ ई० को मद्रास में एक अहम भाषण दिया था, जो ‘इंडियन एक्सप्रेस’ बंगलूर में २० दिसम्बर १९८९ को प्रकाशित हुआ। उस भाषण में उन्होंने कहा था कि “इस दावे का कोई सबूत नहीं मिल सका है कि बाबरी मस्जिद उसी जगह बनाई गई थी, जहां पहले कोई मन्दिर था।” उन्होंने आगे कहा कि “अयोध्या में आज तीस ऐसी जगहें हैं जिनमें से हरेक के बार में यह दावा किया जाता है कि वही राम चन्द्रजी का जन्म-स्थल है।”
प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर रामसरन शर्मा की एद पुस्तक “फिरकावाराना तारीख और राम की अयोध्या” जल्द ही पीपुल्स पब्लिशिंग हाउस से मई १९९० में प्रकाशित हुई। जो अपने विषय पर प्रमाणित और महत्वपूर्ण पस्तक है। शमां जी लिखते हैं कि “मेरी खोज के अनुसार उन लोगों के इस दावे के पक्ष में तिनका बराबर भी ऐतिहासिक सबूत नहीं मिलता कि अयोध्या में ग्यारहवीं और बारहवीं शताब्दी में कोई राम मन्दिर बनाया गया था (जिसे बाबर ने तोड़कर मस्जिद बनाई) पुरातत्व विभाग द्वारा की गई खुदाइयों से भी इसका कोई सुबूत नहीं मिला है।”
इसी से मिलते-जुलते विचार जवाहर लाल नेहरु विश्व विद्यालय के केन्द्र फॉर हिस्टोरिकल स्टडीज़ के २४ गैर-मुस्लिम प्रसिद्ध इतिहासकारों और स्कालरों ने अपने संयुक्त दस्तादेज़ में व्यक्त किये हैं। जाने माने इतिहासकारों का यह दस्तावेज़ी बयान १४ जनवरी १९९० ई० के अंग्रेज़ी साप्ताहिक रेडियन्स दिल्ली सहित राजधानी से प्रकाशित होने वाले कई समाचार पत्रों में छपा था। इतिहासकारों-पुरातत्व विभाग की रिपोटों और बुद्धिजीवियों की खोज और मालूमात तो यह हैं जो ऊपर बयान की गयी हैं। लेकिन आम लोग जो सत्य को नहीं जानते उन्हें गुमराह और उत्तेजित किया जा रहा है। जैसा कि भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी के १७ अगस्त १९९० के एक भाषण से साबित होता है। उन्होंने बुद्धिजीवियों को ललकारते हुए कहाः “पूरे देश में हिन्दू इस समस्या (बाबरी मस्जिद राम जन्म भूमि मन्दिर समस्या) पर उठ खड़े हुए हैं, परन्तु समझदार और विद्वान हिन्दू मन्दिर के खिलाफ हैं।”
रामचन्द्र जी के सब से बड़े भक्त संत तुलसीदास ने भी ‘रामचरित मानस’ में कहीं इस बात का उल्लेख नहीं किया है कि राम मन्दिर को तोड़कर उसकी जगह बाबरी मस्जिद बनाई गई थी। वह अयोध्या में रहे और वहीं उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘रामचरित मानस’ लिखी। यदि राम मन्दिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई होती तो यह कैसे संभव था कि राम चन्द्र जी के यह महान भक्त अपनी पुस्तक में इस बात को न लिखते जो उन के निकट अत्यंत महत्वपूर्ण हो सकती थी। स्पष्ट रहे कि १५२८ ई० में जब मस्जिद बनी थी तो तुलसीदास जी की आयु ३० वर्ष थी।
इतिहास इस सत्य का भी साक्षी है कि बाबर खुली दृष्टि रखने वाला, उदार, न्याय प्रिय और हिन्दू-मुस्लिम भाई-चारे और मेल मिलाप का अलमबरदार शासक था। प्रसिद्ध गैर मुस्लिम इतिहासकारों ने बाबर के उदारतापूर्ण न्यायप्रिय चरित्र की सराहना की है। हाल ही में प्रकाशित शेरसिंह और सुरेन्द्र कौर की संयुक्त पुस्तक “दी सेकुलर इम्परर-बाबर” जो दो भागों में है, उसे पढ़कर यह बात साफ हो जाती है कि बाबर पर इल्जाम लगाने वालों की बातों में कुछ भी बज़न नहीं है। इस तरह की प्रमाणिक पुस्तक को अवश्य पढ़ा जाना चाहिए। वह धर्म के खिलाफ यह महान पाप कैसे सहन कर सकता था कि एक मन्दिर को ढा कर उसकी जगह मस्जिद बन जाने देता। इतना ही नहीं बल्कि यह एक ऐतिहासिक सच्चाई है कि बाबर ने अपनी वसीयत में अपने बेटे हिमांय को ताकीद की थी कि वह किसी मन्दिर को नुकसान न पहुंचाये। बल्कि उन की देख भाल करे और इन्साफ तथा न्याय से प्रजा का दिल जीतने का प्रयत्न करे। उसने अपनी वसीयत में अपने बेटे को यह. भी लिखा था कि यहां की जनता की भावनाओं का आदर करते हुए गाय का गोश्त न खाया जाये।
यदि बाबर सचमुच कट्टर, पक्षपाती और धार्मिक जनूनी होता तो वह ग्वालियर, धौलपुर, चन्देरी आदि के मशहूर मन्दिरों को क्यों नहीं तोड़ा?
सबसे पहले रामचन्द्र जी के जन्म स्थान के सिलसिले में हिन्दुओं की तरफ से जो दावा उठाया गया वह १९ वीं सदी के आरम्भ में था, जबकि मस्जिद को बने हुए ३०० साल बीत चुके थे। और यह दावा भी मस्जिद के अन्दर नहीं था। बल्कि उसके बाहर उत्तर में एक छोटी सी जगह पर था, जिसे आज भी राम चबूतरे के नाम से याद किया जाता है।
१८५५ ई० में मुसलमानों और हिन्दओं में अवध के नवाब वाजिद अली शाह ने समझौता करा दिया और मस्जिद से बाहर चबूतरे पर जिसे हिन्दू रामचन्द्र जी का जन्म स्थल : कहते थे, पूजा की इजाजत दे दी थी।
१८८५-८६ का मुकदमा
रघुबीर दास नामक महंत और उनके कुछ साथियों ने १८८५-८६ ई० ही में फैज़ाबाद के सब जज पडित हरिकृष्ण की अदालत में मुकदमा दायर किया कि बाबरी मस्जिद के बाहरी घेरे में मस्जिद की असल इमारत से ९५ कदम पर जो एक चबूतरा है, वही राम जन्म स्थान है। इसलिए उस चबूतरे पर शेड डालने की इजाजत दी जाये। सब-जज ने उनके इस दावे को रद्द कर दिया और मुकदमा खारिज कर दिया। उन्होंने जिला न्यायाधीश की अदालत में अपील की। उन्होंने भी उसे • खारिज कर दिया। जिला न्यायाधीश भी हिन्दू ही थे। हाईकोर्ट
के अंग्रेज़ जज ने भी उनकी अपील को नकार दिया। आज विश्व हिन्दू परिषद की ओर से यह प्रोपेगंडा पूरे ज़ोर-शोर से किया जा रहा है कि मन्दिर तोड़कर मस्जिद बनाई गयी है। जबकि सही बात यह है कि उन्होंने अपने किसी मुकदमें में इसका उल्लेख तक नहीं किया था। ऐतिहासिक मुकदमे का अदालती सबूत यह सिद्ध करता है कि हिन्दुओं ने बाबरी मस्जिद की इमारत पर नहीं, बल्कि इस से दूर एक चबूतरे का दावा किया था। इस मुकदमे का पूरा रिकार्ड इलाहाबाद हाई कोर्ट की विशेष बेंच के सामने पेश है। वास्तविकता यह है कि बाबरी मस्जिद पर २२ दिसम्बर १९४९ में गैर-कानूनी ढंग से किए गये कब्ज़े के बाद ही कहानियां गढ़ी गयी हैं।
१९४९ ई० का ज़बरदस्ती कब्जा
२२-२३ दिसम्बर १९४९ ई० की मध्य रात्रि को मस्जिद के मुख्य द्वार का ताला तोड़ कर साम्प्रदायिक हिन्दू मस्जिद में दाखिल हो गये और मस्जिद के अन्दर मेम्बर पर श्री राम चन्द्र जी आदि की मूर्तियां रख दी गईं, मशहूर यह किरा गया कि मूर्तियां आपसे आप वहां प्रकट हो गयीं हैं। स्पष्ट रहे कि राम चबूतरे को हासिल करते वक्त भी यही बात कही गयी थी कि वहां राम चन्द्रजी प्रकट हुए हैं। फ़ज की नमाज़ से पहले ही हिन्दू बडी सख्यां में वहां जमा हो गये। अफसरान घटना स्थल पर पहुंचे और मस्जिद को अपने कब्जे में ले लिया।
इस घटना का बयान हकूमत के दो हिन्दू जिम्मेदार अफसर की रिपोर्ट में इस प्रकार है:
“माता प्रसाद का बयान है कि जब प्रातः नौ बजे जन्म स्थल पहुंचा तो मालूम हुआ कि ५०, ६० व्यक्ति ताला तोड कर मस्जिद में दाखिल हो गये या कम्पाउंड की दीवार पर सीढ़ी लगाकर कूद गये और वहां श्री राम की मूर्ति रख दी और अन्दर और बाहर की दीवारों पर सीता राम आदि गेरू से पेन्ट कर दिया। हंस राम ने जो उस समय डयूटी पर था, लोगों को उससे ज रहने के लिए कहा, लेकिन वे नहीं माने। ये लोग पी. ए. सी. के पहुंचने से पहले ही वहां दाखिल हो चुके थे। जिले के – अधिकारियों ने जरूरी प्रबन्ध किये, इसके बाद पांच छः हजार व्यक्ति वहां इकट्ठा हो गये और भजन गाते और धार्मिक नारे लगाते हुए मस्जिद में दाखिल होने की कोशिश की, जिस से उन्हें रोकने की कोशिश की गयी और कोई अप्रिय घटना नहीं घटी। रामदास, राम शुक्ल और अन्य पचास साठ लोगों ने गुप्त रूप से मस्जिद में दाखिल होकर उसकी पवित्रता को नष्ट किया। ड्यूटी पर मौजद हुकूमत के कर्मचारी इसके गवाह हैं। अतः यह नोट लिख लिया और फाइल कर लिया।”
दस्तखत
स्टेशन आफीसर
यह उस (अग्रेजी) FIR का अनुवाद है जिसे श्री राम दूबे सब इन्सपैक्टर ने २३/१२/१९४९ ई० को दाखिल किया था।
मस्जिद से मूर्तियां हटा देने के बजाय ग़लत तौर पर मस्जिद पर ताला लगा दिया गया, मस्जिद से लगभग २०० गज दूरी के अन्दर मुसलमानों के दाखिले पर पाबन्दी लगा दी गयी।
- इस मुकदमे के बारे में डिप्टी कमिशनर ने जो बयान अदालत में हुकूमत की तरफ से दाखिल किया उसके कुछ अशं ये हैं:-
“जिस का झगड़ा है, वह मिल्कियत बाबरी मस्जिद के नाभ से जानी जाती है। लम्बे समय से उसे मुसलमान मस्जिद के रूप में नमाज़ के लिए इस्तेमाल करते आ रहे हैं। यह श्री राम
मन्दिर के रूप में इस्तेमाल नहीं है।” (पैरा ग्राफ-१४) “२२ दिसम्बर १९४९ ई० को रात को गुप्त रूप और गलत तरीके से राम चन्द्र जी की मूर्ति उस में रख दी
गयी।”
(पैरा ग्राफ-१५) “इसके नतीजे में जनता की अमन-शान्ति में विघ्न उत्पन्न हो गया है, जिस के लिए हकमत को हस्तक्षेप करना पड़ा।” (पैरा ग्राफ-१६)
हस्ताक्षर जे० एन उर्गा
डिप्टी कमिशनर फैजाबाद
कुछ ज़िम्मेदारों की प्रतिक्रियाएं
मस्जिद पर कब्जा करने के सिलसिले में जो ज़ोर ज़बरदस्ती की जा रही थी, उस वक़्त के गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने उसे पसन्द नहीं किया और उस समय उ० प्र० के मुख्य मंत्री जी. बी. पन्त के नाम अपने एक पत्र में लिखा कि इस समस्या को शान्ति पूर्ण तरीके से एक दूसरे के साथ उदारता पूर्ण भाव से हल करना चाहिए। ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं होनी चाहिए। एकतरफा कार्यवाही से यह समस्या हल नहीं हो सकती।
अयोध्या के प्रसिद्ध गांधी वादी नेता स्वामी अक्षय ब्रह्मचारी ने मस्जिद का कब्ज़ा मुसलमानों को दिलाने के लिए फरवरी १९५० और अगस्त १९५० में मस्जिद के सामने मरण व्रत शुरू किया था। और कांग्रेस और हुकूमत के अन्य ज़िम्मेदारों को पत्र लिखे और इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई थी। उस समय उत्तर प्रदेश के मख्य मंत्री पंडित गोविन्द वल्लभ पंत ने उनका व्रत तुड़वाया था और उन्हें विश्वास दिलाया था कि मस्जिद मुसलमानों के हवाले कर दी जायेगी। स्वामी जी अभी जीवित हैं और उन्होंने दिल्ली की एक प्रेस कांफ्रेंस में सारी सच्चाई खोलकर रख दी है। लेकिन राष्ट्रीय समाचार पत्रों ने उसे प्रकाशित नहीं किया है। दिल्ली से प्रकाशित होने वाले कुछ ही समाचार पत्रों ने इसे छापा है।
मुसलमानों की हालत बड़ी दयनीय थी और हुकूमत अपनी ज़िम्मेदारियां पूरी नहीं कर रही थी तो आखिरकार मुसलमानों को मस्जिद हासिल करने के लिए मजबूरन खुद अदालत की तरफ रुजू करना पड़ा। यह सीधा-सादा मामला कानून की खींच तान और मजलूम को न्याय दिलाने में न्यायालयों द्वारा किये जाने वाली देर की नज हो गया। ज़बरदस्ती कब्ज़े में साम्प्रदायिकता तथा राजनीतिक मौका परस्ती का भी पूरा हाथ रहा है।
१९८६ ई० में साम्प्रदायिक गुटों तथा अवसरवादी राजनीतिज्ञों के गठजोड़ ने साज़िश करके मामले को और भी धमाकेदार बना दिया है। १ फ़रवरी १९८६ को फैज़ाबाद जिला ‘न्यायाधीश श्री पांडे की अदालत में एक दूसरे नौजवान वकील श्री पांडे ने अपील की कि बाबरी मस्जिद का ताला खुलवा दिया जाये। और वहां रखी मूर्तियों की पूजा-पाठ की अनुमति हिन्दुओं को दे दी जाये। इसकी दूसरे पक्ष (गुसलमानों) को कोई सूचना नहीं दी गयी और जब मुसलमान सद से अदालत में पहुंचे तो उनकी बात सुनने से इंकार कर दिया गया। न्यायाधीश ने अंतरिम आदेश दे दिया कि मस्जिद का ताला हिन्दुओं की पूजा के लिए खोल दिया जाये। इस तरह मस्जिद के द्वार हिन्दुओं के लिए खोल दिए गए और वहां पूजा-पाठ और भजन के दृश्य दूरदर्शन पर भी दिखाये गये।
न्यायाधीश के इस फैसले के खिलाफ दूसरे ही दिन २ फरवरी को मुसलमानों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की विशेष बेंच के सामने एक रिर्ट’ पेटीशन दायर की और खेद की बात यह है कि आज तक उस पर फैसला नहीं किया गया।
भारत की अदालतों के इतिहास में ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता, जब एक विवादित भवन जो कुर्क और ज़ब्त हो और सरकारी तहवील में हो, और जिसकी मिलकियत का………..