आह! यह तीन गुम्बदों वाली बराबरी मस्जिद जिसे भुलाया नहीं जा सकता!
फैसला तो हुआ था , लेकिन क्या इन्साफ भी हुआ ?
यह बात तो सही है ,कि अदालत फ़ैसला देती है , और उसे मान लिया जाता है , लेकिन क्या वो फ़ैसला, इन्साफ भी होता है ? और क्या फ़ैसला आस्थाओं पर भी हुआ करता है?
वैसे आज जो कुछ करना है कर लो ,असल फ़ैसला तो वहां होगा , जहां इन्साफ ही इन्साफ है ,
भारतीय समाज में वर्षों तक बराबरी मस्जिद का विवाद चला , लेकिन जो आरोप थे ,वो तो साबित न हो सके , मगर फ़ैसला आरोप लगाने वालों के पक्ष में ही हुआ. फ़ैसले का आधार था ” आस्था “
सवाल यह पैदा होना चाहिए कि क्या देश के समुदायों के लोगों की आस्थाओं का भी ख्याल रखा जाए गा?
हमारा यह लेख शाय़द कुछ बातें इस में काम की होसकती हैं पढ़ने का कष्ट करें।
आवश्यकता है अज़ान और मस्जिद के संबंध में जानकारी प्राप्त करने की….!
अज़ान सारे संसार में दिन में पांच बार होती है , आखिर यह अज़ान है क्या ,इस पर विचार करने के बाद ही फिर मस्जिद का मामला सामने आजाएं गा । और जब अज़ान और मस्जिद की बात समझ में आजाएगी तो फिर देश वासियों में आपस में भाईचारा और प्रेम का वातावरण पैदा हो गा, पिछले कुछ वर्षों पहले एक पंडित जी से जो हमारी भेंट हुई ,और जो बात चीत हुई उसे एक बार फिर पढ़ लीजिए।
“काल्पनिक श्रेत्र में एक पंडित जी हमारे अच्छे साथी रहे हैं ,उन की एक खास बात जो हमें बहुत ही पसन्द आती है , यह है कि जब कोई बात उन की समझ में न आए तो कहते हैं यार खान साहब मैं इस बात पर विचार करूंगा, अभी तो यह मेरी समझ से बाहर है , अभी हाल ही में चार डिसम्बर को बड़ी फ़िक्र से वह हमारे पास आए और कहने लगे, कि आप तो यह कहते हैं कि बाबरी मस्जिद का मामला अदालत में है ,और मुस्लिम इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि फैसला सामने आजाए तो मानलेंगे, हमने कहा पंडित जी हम ने मुस्लिम उलमाओं की बात आप के सामने रखी थी, कि यदि अदालत में यह बात साबित हो जाए कि जिस जगह मस्जिद बनाई गई थी वह अगर किसी और की जगह पर कब्ज़ा करके बनाई गई है तो मुसलमान उसे खुद ही छोड़ देंगे, तो पंडित जी कहने लगे यदि यह साबित न हुआ तो ? हमने कहा फिर तो बात ही साफ़ हो जाएगी ,कि यह जगह मस्जिद ही की है, क्यूंकि मुसलमान इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि वह अल्लाह जो बड़ा इन्साफ वाला है ,वह किसी पर ज़ुल्म नहीं होने देगा, और जिस ने जितनी बुराई की है उसे उतनी ही सज़ा देगा और जिस ने जो नेकी की है उसे अपनी ओर से बहुत ज़्यादा नवाज़े गा। वह बड़ा महेरबान और रहम खाने वाला भी है, लिहाज़ा ऐसे महान अल्लाह के लिए कभी किसी की जगह पर नाजायज़ कब्जा़ नहीं कर सकते , पंडित जी उस के घर यानी मस्जिद के निर्माण के लिए हराम कमाई , व्याज का पैसा और चोरी डाके की रक़म भी नहीं चलती ,वह अल्लाह पाक है और उस के घर यानी मस्जिद के निर्माण के लिए पाक और जायज़ माल ही लगाया जाता है । और मुसलमान खुद भी ऐसी दौलत से बचने की कोशिश करते हैं । हम यह सोच भी नहीं सकते कि कोई मुस्लिम बादशाह इतनी बड़ी ग़लती करे कि नाजायज़ जगह पर अल्लाह की इबादत के लिए मस्जिद बनाए, असल में मस्जिद यानी अल्लाह की इबादत की जगह है, पवित्र क़ुरआन में अल्लाह खुद फरमाता है कि:
और यह मस्जिदें अल्लाह के लिए हैं। अतः अल्लाह के साथ किसी और को न पुकारो। फिर अल्लाह के प्रेषित यह फरमाते हैं कि अल्लाह ने पूरी धरती को अपनी बंदगी के लिए पाक कर दिया है , इस लिए वह चाहता है कि उस के बन्दे भी उस की धरती पर सिर्फ उसी के आदेशानुसार अपना जीवन गुजारें, और उस के आदेशों में सब से महत्वपूर्ण बात यही है कि धरती पर बसने वाले सारे इन्सान एक ही माता-पिता की संतान हैं, ईश्वर ही ने सब को पैदा किया और उन के जीने के साधनों को भी दिया है। इसलिए वह कहता है कि उसे छोड़ कर किसी और को न पुकारो। एक जगह वह अपने प्रेषित से और उनके द्वारा सारे ही इन्सानों से यह फरमाता है कि:
“कहो, क्या मैं आकाशों और धरती को पैदा करनेवाले अल्लाह के सिवा किसी और को संरक्षक बना लूं? उस का हाल यह है कि वह खिलाता है और स्वयं नहीं खाता। कहो, मुझे आदेश हुआ है कि सब से पहले मैं उस के आगे झुक जाऊं। और यह कि तुम बहुदेववादियों में कदापि सम्मिलित न होना”
और फिर यह चेतावनी भी दी गई कि : कहो, यदि मैं अपने रब की अवज्ञा करूं, तो उस स्थिति में मुझे एक बड़े भयानक दिन की यातना का डर है।”
असल में सोचने की बात यही है कि जो ईश्वर अपने बन्दों को पैदा करने वाला , सारी सृष्टि का रचयिता ,और इन्सानों की सेवा के लिए यह दुनिया जहान की चीज़ों को देने वाला, अब यदि उस की धरती पर उस को छोड़ कर किसी और की उपासना कीजाए तो वह कैसे बर्दाश्त कर सकता है ?
पंडित जी कहने लगे आप की इन बातों का तो साफ मतलब ही यह है कि फिर मस्जिद वहीं बनना चाहिए, हमने कहा पंडित जी आप यह बताइए कि यदि वह जगह पर पहले से मस्जिद थी ,और जैसा कि सारे पुराओं से साबित हो जाता है , तो क्या उस सुरत में भी कोई विवाद बाकी रह जाता है? पंडित जी कहने लगे मेरे ख्याल में तो फिर कोई विवाद बाकी नहीं रहना चाहिए, । लेकिन मैं आज आपके पास एक बड़ी खबर लेकर आया हूं। हमने कहा तो फिर आप पहले ख़बर सुना देते, कहने लगे इक़बाल अंसारी जो बाबरी मस्जिद का केस लड़ रहे हैं उन को किसी ने जान से मारने की धमकी दी है, । हमने कहा क्या आप की नज़र में मन्दिर के निर्माण का यह तरीका उचित है?, पंडित जी कहने लगे , आप की बातों को सुन कर तो मुझे लग रहा है कि राम भी होते तो इस प्रकार से मन्दिर निर्माण को बिल्कुल पसन्द न करते ,! हमने कहा कि जगह की मिल्कियत साबित न हो और हम कह दें कि यह आप का पांच सौ साल पूराना मकान जो है यहां हमारे फलां फलां पैदा हुए थे आप इसे खाली कर दें, यह हमारी आस्था का सवाल है , तो यह तरीका कैसे चलेगा?
पंडित जी कहने लगे भाई आज माहौल ही ऐसा बनाने की कोशिश की जारही है,कि बस सच्चाई कुछ भी हो, हमें यह चाहिए, मुझे लगता है कि कुछ लोग इस मामले में उलझा कर हमारे परम्परा के भाई चारे के संबंधों को खत्म करके लडाना चाहते हैं, इस में सभी का नुक़सान होगा। हम ने कहा आपने सही निश्कर्श निकाला, लेकिन आप यकीन रखिए कि चन्द लोगों के सिवाय बाकी आम जनता सियासी लोगों की चालों को समझ रही है, ।
पंडित जी कहने लगे खान साहब आपकी बातों से तो मुझे यह लगता है कि अल्लाह के घर विरान करने पर हो सकता है कि देश पर उस का अज़ाब नाज़िल हो जाए, । इसलिए मुसलमान भाईयों को चाहिए कि पवित्र क़ुरआन में मस्जिद के , अल्लाह के और पैगम्बर के संबंध में स्पष्ट रुप से जो बातें आइ है उसे सब धर्म के लोगो को बताना चाहिए।
मुझे लगता है कि वास्तव में इस देश में यदि भाई चारे का माहौल बन जाए तो संसार में यह देश सर्वश्रेष्ठता का प्रतीक हो सकता है। और तब सही मायने में देश का विकास होगा, देश में शांति होगी , वरना आज जिस तरफ इस देश की गाड़ी चल रही है,देखना सब को बर्बाद करदेगी। और खान साहब कान खोल कर सुन लीजिए, यदि यह देश बर्बाद होगा, तो इस की बर्बादी में आप मुस्लिम लोगों का भी बड़ा योगदान होगा।
हमने घबरा कर पुछा , पंडित जी वो कैसे ? कहने लगे कि आप लोग ईश्वरीय बातों को देश वासियों से छिपा कर जो रखते हैं।
और और मुझे ऐसा लगा कि पंडित जी ने हमारे सामने आईना रख दिया ,जिस में अपनी ही शक्ल देख कर हमें शर्म आने लगी।
हम सोच रहे थे कि पवित्र क़ुरआन की शिक्षा उन तक कैसे पहुंचाएं अभी तो हम ने खुद भी उसे अच्छी तरह नहीं समझा। हमें अपना ही कसूर नज़र आया।”
असल में यह थी पहली शक्ल बाबरी मस्जिद की
मोहम्मद इब्राहिम ख़ान आकोट , सदर प्रेसिडेंट इदारा अदबे इस्लामी हिंद अकोट महाराष्ट्र +91 70571 17355