मुसन्निफ़ – Kalim Yusuf
मुतर्जिम – Fuzail Siddiqui
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✺ चंद दिनो क़ब्ल (पहले) हिन्दुस्तान की वज़ीर बराए अक़ल्लियती उमूर (अल्पसंख्यक कार्य मंत्री) स्मृति ईरानी सऊदी अरब के दौरे पर थी, मदीना मुनव्वरा मे भी उनकी आमद हुई और मस्जिद नबवी के इर्द-गिर्द विज़िट किया जिस की कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया पर गर्दिश कर रही है। और इस पर हर आदमी ने अपने अपने हिसाब से फ़तवे जारी कर रहा है
☞ यू तो हर मसअला को किताब-ओ-सुन्नत की रोशनी मे समझना चाहिए, लेकन शर’ई मसाइल को बिल-ख़ुसूस जज़्बात के बजाये किताब-ओ-सुन्नत और अक़वाल उलमा की रोशनी में ही समझने की कोशिश करनी चाहिए, अपने निज़ा और आपसी इख़्तिलाफ़ के हल के लिए किताब ओ सुन्नत को ही फ़ैसल मानना चाहिए, वहाँ से जो फ़ैसला मिले ब-सर-ओ-चश्म (सर आँखो पर) उसे क़बूल करना चाहिए।
⦿ असल मस’अला की वज़ाहत से क़ब्ल चंद चीज़ो को जान लेना बहुत ज़रूरी है ताकि तहरीर पढ़ते वक़्त किसी क़िस्म की उलझन का शिकार होने से बचा जा सके।
◈ जब लफ़्ज़ हिजाज़ बोला जाता है तो इसमे मदीना मुनव्वरा दाख़िल होता है।
◈ मक्का – मदीना बल्कि हिजाज़ के पूरे इलाक़े मे ग़ैर मुस्लिमो को रहाइश इख़्तियार करने की इजाज़त देना बिल-इत्तिफ़ाक़ दुरूस्त नही है इल्ला यह कि कोई ख़ास मसलहत हो, लेकिन दाइमी क़ियाम कि इजाज़त दुरूस्त नही।
◈ ﴿یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤا۟ إِنَّمَا ٱلۡمُشۡرِكُونَ نَجَسࣱ فَلَا یَقۡرَبُوا۟ ٱلۡمَسۡجِدَ ٱلۡحَرَامَ بَعۡدَ عَامِهِمۡ هَـٰذَاۚ وَإِنۡ خِفۡتُمۡ عَیۡلَةࣰ فَسَوۡفَ یُغۡنِیكُمُ ٱللَّهُ مِن فَضۡلِهِۦۤ إِن شَاۤءَۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِیمٌ حَكِیمࣱ﴾ [التوبة ٢٨].
ऐ ईमान वालों! बेशक मुशरिक बिल्कुल ही नजिस है, वह इस साल के बाद मस्जिद हराम के पास भी न भटकने पाये, अगर तुम्हे मुफ़लिसी का ख़ौफ़ है तो अल्लाह तुम्हे दौलतमंद कर देगा अपने फ़ज़ल से अगर चाहे अल्लाह इल्म ओ हिकमत वाला है।
यह आयत सिर्फ़ हरम मक्की के लिए ख़ास है जिसकी तफ़सील ज़ील की सुतूर मे आयेगी इन शा अल्लाह…
◈ हरम मक्की और हरम मदनी के अहकाम मे उलमा-ए-किराम ने तफ़रीक़ की है।
◈ हम इस तहरीर मे दो मस’अले की वज़ाहत ज़रूरी समझते हैं
पहला मसअला : ग़ैर मुस्लिमो के मदीना मुनव्वरा मे दाख़िल होने का शरी’अत मे क्या हुक्म है?
दूसरा मसअला : ग़ैर मुस्लिमो के मस्जिद नबवी मे दाख़िल होने का क्या हुक्म है?
◙ पहला मसअला :
बे-ग़रज मसलहत ग़ैर मुस्लिमो के मदीना मुनव्वरा मे दाख़िल होने के जवाज़ पर फ़ुक़्हा-ए-किराम का इत्तिफ़ाक़ है। (1)
❍ इमाम नववी रहिमहुल्लाह फ़रमाते हैं :
“उलमा-ए-किराम फ़रमाते हैं : ग़ैर मुस्लिम हिजाज़ के इलाक़े मे सफ़र कर सकते हैं, उन्हें रोका नही जायेगा, ताहम उन्हें वहाँ तीन दिन से ज़्यादा ठहरने नही दिया जाये, जैसा कि इमाम शाफ़ई रहिमहुल्लाह और उनसे इत्तिफ़ाक़ रखने वाले कहते हैं, अलबत्ता हरम मक्की के हुदूद मे ग़ैर मुस्लिमो को किसी भी सूरत में दाख़िल होने के इजाज़त देना जाइज़ नही…..” (2)
❍ इमाम अबू मुहम्मद अल-हुसैन बिन मस’ऊद बग़वी रहिमहुल्लाह फ़रमाते हैं : ग़ैर मुस्लिमो के लिए इस्लामी ममालिक ममालिक मे दाख़िल होने के तईं (लिए) तीन क़िस्म के अहकाम है :
❶ हरम मक्की : इसके हुदूद मे ग़ैर मुस्लिमो को किसी भी सूरत में दाख़िल होने की इजाज़त देना जाइज़ नही गरचे वह ग़ैर मुस्लिम ज़िम्मी ही क्यो न हो।
❐ क्योंकि अल्लाह रब्बुल आलमीन ने फ़रमाया :
﴿یَـٰۤأَیُّهَا ٱلَّذِینَ ءَامَنُوۤا۟ إِنَّمَا ٱلۡمُشۡرِكُونَ نَجَسࣱ فَلَا یَقۡرَبُوا۟ ٱلۡمَسۡجِدَ ٱلۡحَرَامَ بَعۡدَ عَامِهِمۡ هَـٰذَاۚ وَإِنۡ خِفۡتُمۡ عَیۡلَةࣰ فَسَوۡفَ یُغۡنِیكُمُ ٱللَّهُ مِن فَضۡلِهِۦۤ إِن شَاۤءَۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِیمٌ حَكِیمࣱ﴾ [التوبة ٢٨].
ऐ ईमान वालों! बेशक मुशरिक बिल्कुल ही नजिस है, वह इस साल के बाद मस्जिद हराम के पास भी न भटकने पाये, अगर तुम्हे मुफ़लिसी का ख़ौफ़ है तो अल्लाह तुम्हे दौलतमंद कर देगा अपने फ़ज़ल से अगर चाहे अल्लाह इल्म ओ हिकमत वाला है।
☞ अगर दार-उल-कुफ्र से कोई हिकमती क़ासिद हरम मक्की के हाकिम से मिलने आये तो उसे भी दाख़िल होने न दिया जाये, बल्कि इमामे वक़्त हुदूद हरम से बाहर निकल कर उससे गुफ़्तगू करे, या अपने किसी नाइब (असिस्टेंट) को भेजे।
❷ हिजाज़ का इलाक़ा (इसमे मदीना मुनव्वरा भी दाख़िल है) :
हाकिम वक़्त की इजाज़त से काफ़िर वहां जा सकते हैं, लेकिन सफ़र की मुद्दत से ज़्यादा वहाँ क़ियाम नही कर सकते, क्योंकि उमर रज़ियल्लाह अन्हु ने जब उन्हें जला-वतन किया था तो उसके बाद उन्हें बे-ग़रज़ तिजारत वग़ैरह आने की इजाज़त देते थे।
❸ हरम मक्की और हिजाज़ के अलावा दीगर मुस्लिम ममालिक मे ज़िम्मी (वह व्यक्ति जो ईश्वर को एक न मानने वाला नागरिक जो इस्लामी शासन की सूरक्षा में रहता हो और उसने तावान को स्वीकार कर लिया हो) की हैसियत से ग़ैर मुस्लिमीन जाकर क़ियाम कर सकते हैं। (3)
❍ हाफ़िज़ इब्न रजब रहिमहुल्लाह फ़रमाते हैं :
उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहिमहुल्लाह ने वलीद बिन अब्दुल मलिक के दौर-ऐ-हुकूमत मे मस्जिद नबवी की तामीर ओ तरमीम के लिए नस्रानी मज़दूर को उजरत (मज़दूरी) पर रखा था। (4)
❍ इब्न क़ुदामा रहिमहुल्लाह फ़रमाते हैं :
ग़ैर मुस्लिमीन को हिजाज़ के इलाक़े मे बसने की इजाज़त नही दी जा सकती, ताहम उन्हें दाख़िल होने की इजाज़त देना दुरूस्त है, क्योंकि वह लोग अमीरूल मोमीनीन उमर व उस्मान रज़ियल्लाह अन्हुमा के ज़माने मे और उनके बाद के ख़ुल्फ़ा के ज़माने मे वहां जाया करते थे, हाँ बला इजाज़त दाख़िल नही हो सकते हिजाज़ मे इन मुशरिकीन का दाख़िल होना मुसलमानो की ज़रूरत व मसलहत की ख़ातिर है और यह हाकिमे वक़्त की राय पर मौक़िफ़ है कि उन्हें वहां दाख़िल होने की इजाज़त दे या न दे, इजाज़त मिलने के बाद वह हिजाज़ के इलाक़े मे दाख़िल हो तो तीन दिन से ज़्यादा न रुके, इसकी दलील यह है कि उमर रज़ियल्लाह अन्हु ने ग़ैर मुस्लिमीन ताजिरो को तीन दिन के लिए मदीना मे दाख़िल होने की इजाज़त दी थी….” (5)
❍ इब्न क़ुदामा रहिमहुल्लाह फ़रमाते हैं :
ग़ैर मुस्लिमो के लिए बे-ग़रज़ तिजारत वग़ैरह सरज़मीन हिजाज़ मे दाख़िल होना जाइज़ है, उमर रज़ियल्लाह अन्हु के ज़माने मे नसारा मदीना मुनव्वरा मे बे-ग़रज़ तिजारत आया करते थे….” (6)
❍ इमाम इब्न क़य्यिम रहिमहुल्लाह फ़रमाते हैं जिसका ख़ुलासा यह है कि : ग़ैर मुस्लिमो को मदीना मुनव्वरा मे दाख़िल होने से मना नही किया जायेगा, क्योंकि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने नजरान से आने वाले नसारा के वफ़्द (राजदूत) को अपनी मस्जिद में ठहराया था, और जिस आयत मे मस्जिद हराम मे मुशरिको के दाख़िल होने की मुमानिअत (मनाही) है उसमे मदीना मुनव्वरा शामिल नही है। (7)
❍ मज़ीद फ़रमाते हैं :
जब मज़्कूरा-बाला आयत नाज़िल हुई तो यहूद ख़ैबर मे और उसके इर्द-गिर्द रहते थे, उन्हें मदीना मुनव्वरा मे आने से नही रोका जाता था, बल्कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपनी ज़िंदगी के आख़िर अय्याम तक उनसे मामलात करते रहे, चुनान्चे जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफ़ात हुई तो चंद सा ग़ल्ला के औज़ आपकी ज़िरह एक यहूदी के पास गिरवी थी…. नज्रान से आने वाले नसारा और क़बीला सक़ीफ़ के मुशरिकीन को नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी मस्जिद मे ठहराया था। (और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मस्जिद मे ठहरने के लिए मदीना मे दाख़िल होना ज़रूरी है) (8)
❍ शैख़ इब्न बाज़ रहिमहुल्लाह फ़रमाते हैं :
आयात बाला से ग़ैर मुस्लिमीन के मदीना मुनव्वरा मे दाख़िल होने की हुरमत साबित नही होती, क्योंकि नजरान के नसारा और क़बीला सक़ीफ़ के मुशरिक वफ़्द नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से मिलने के लिए मदीना मुनव्वरा मे दाख़िल हुआ था, इससे यह बात वाज़ेह होती है कि हरम मदनी का हुक्म हरम मक्की जैसा नही है…
❍ शैख़ इब्न उसैमीन रहिमहुल्लाह फ़रमाते हैं :
हरम मक्की मे मुशरिकीन दाख़िल नही हो सकते जब कि मदीना मुनव्वरा मे दाख़िल हो सकते हैं। (9)
❍ शैख़ सालेह अल-फौज़ान हाफ़िज़ाहुल्लाह फ़रमाते हैं :
“मदीना मक्का की तरह नही है इसमे कुफ़्फ़ार दाख़िल नही हो सकते, गरचे मदीना भी मक्का की तरह हरम है, लेकिन कुफ़्फ़ार मदीना मुनव्वरा मे दाख़िल हो सकते हैं, क्योंकि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ज़िंदगी के आख़िर अय्याम मे नजरान के नसारा और बाज़ मुशरिकीन मदीना मुनव्वरा मे दाख़िल हुए थे…. ” (ऑडियो)
◙ दूसरा मसअला :
और रही बात कि कुफ़्फ़ार व मुशरिकीन मस्जिद नबवी मे दाख़िल हो सकते हैं या नही?
☞ तो इसका जवाब यह है कि : ज़रूरत व मसलहत की ग़रज से ग़ैर मुस्लिमीन मस्जिद नबवी मे दाख़िल हो सकते हैं जिसकी बाज़ दलील सुतूर-ए-बाला मे गुज़री, मज़ीद दलील मुलाहिज़ा फ़रमाइये :
❍ समामा-बिन-अस्साल रज़ियल्लाह अन्हु को इस्लाम लाने से क़ब्ल आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मस्जिद नबवी के सुतून से बाँध दिया था। (10)
❍ जुबैर-बिन-मुतइम रज़ियल्लाह अन्हु जब हालत शिर्क मे थे तो मग़रिब की नमाज़ के वक़्त मस्जिद नबवी मे दाख़िल हुए थे। (11)
शैख़ अल्बानी रहिमहुल्लाह ने इसे सहीह क़रार दिया है। (12)
❍ शैख़ अल्बानी रहिमहुल्लाह फ़रमाते हैं :
आयात-ए-बाला मे ख़सूसियत के साथ मस्जिद हराम का ज़िक्र करना इस बात की दलील है कि मस्जिद हराम के अलावा दीगर मस्जिद मे कुफ़्फ़ार व मुशरिकीन दाख़िल हो सकते हैं, जिसकी ताईद मज़कूरा बाला अहादीस से होती है। (13)
✺ सऊदी अरब के ख़िलाफ़ बर्रे-सग़ीर के ईरान नवाज़ शिया व रवाफ़िज़ ख़ास तौर पर, और ऐसे ही बाज़ मुत’अस्सिब देवबंदी, बरेलवी, जमाअत इस्लामी और इनके अफ़्कार से मुतास्सिरीन लोग सबसे ज़्यादा बोलते हैं, अफ़वाह फैलाते है और ग़लत प्रोपेगेण्डा करते हैं, और किसी मस’अले का शर’ई हुक्म जाने बग़ैर सऊदी अरब पर तरह तरह के इल्ज़ामात लगाते हैं, इन तीनो मकातिब-ए-फ़िक्र (schools of thought) का ताल्लुक़ फ़िक़्ह हनफ़ी से है, और फ़िक़्ह हनफ़ी के मुताबिक़ तो मदीना मुनव्वरा के साथ साथ मक्का मुकर्रमा मे भी ग़ैर मुस्लिमीन जा सकते हैं, जब कि जम्हूर उलमा-ए-किराम ने हरम मक्की मे ग़ैर मुस्लिमीन के दुख़ूल को किसी भी हालत मे जाइज़ क़रार नही दिया है।
अगर यह अफ़राद किसी मसअला मे सऊदी अरब के ख़िलाफ़ बोलने से क़ब्ल इसका शर’ई हुक्म जान लेते, अपने उलमा से दरयाफ़्त कर लेते तो ज़्यादा बेहतर होता, और ज़बान व क़लम का वक़ार भी मजरूह नही होता।
☞ ख़ुलासा कलाम यह है कि :
बे-ग़रज़ मस्लहत व ज़रूरत हाकिमे वक़्त की इजाज़त से ग़ैर मुस्लिमीन मदीना मुनव्वरा मे दाख़िल हो सकते हैं, इस बात पर उलमा-ए-किराम का इत्तिफ़ाक़ है।
वल्लाहु आलम
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❶[الموسوعة الفقهية الكويتية: ١٧؍۲۰۵]
❷[المنهاج: ١١؍ ۹٤]
❸[شرح السنة: ١١؍۱۸۳]
❹[فتح الباري: ٣؍۲۹۷]
❺[الكافي في فقه الإمام أحمد: ٤؍۱۸۰]
❻[المغني: ٩؍ ۳۵۹]
❼[أحكام أهل الذمة: ١؍۳۹۷]
❽[أحكام أهل الذمة: ١؍٤٠٢]
❾[مجموع فتاوى ورسائل العثيمين: ٢٢؍٢٤٠]
❶⓿[صحیح بخاری: ٤٣٧٢]
❶❶[مسند احمد: ١٦٩٦٦]
❶❷ [الثمر المستطاب: ٢؍ ۷۷۲]
❶❸[الثمر المستطاب: ٢؍ ۷۷۲]