15 हजार भारतीयों की मौत के जिम्मेदारों से हमदर्दी, पीड़ितों को मुआवजे के लिए तरसाया,
Henry Kissinger का Bhopal Gas Tragedy 1984 से विवादास्पद लिंक
भोपाल गैस पीडि़तों को अभी तक न्याय न मिलने उचित मुआवज़ा न मिलने के लिये के/ तत्कालीन से लेकर वर्तमान/केन्द्र और राज्य सरकारें जि़म्मेदार नहीं है क्या??असल में बहुत बड़ा $गबन किया गया है , गैस कांड होते ही सहायता के लिये अपील की गई विदेशों से बहुत बड़ी बड़ी धनराशि आई, देशवासियों व प्रदेशवासियों स्वयं भोपाल के उद्योगपतियों ने भी दिया था सहायता धन लेकिन अंतरिम राहत के नाम पर चंद रूपया बांटकर क्या कर लिया गया $गबन?? क्या नागरिकों की सुरक्षा और स्वास्थ्य रक्षा की जि़म्मेदारी सरकारों की नहीं बनती?? क्या देश के नागरिक प्रत्येक वस्तु पर टैक्स देते हैं उसमें से विपत्ति आपदा राहत में खंर्च नहीं किये जाने का प्रावधान है यदि है तो अंतरिम राहत के नाम पर उसमें से भी निकाले होंगे तो $िफर जो सहायता राशि चारो तरफ़ से आई वो धन कहाँ गया।
और जो अमरीकन कंपनी ने जितनी राशि मुआ़वज़ा बांटने के लिये दिया था क्या वो पूरी बाट दी गई यदि नहीं तो उस राशि का मुआवज़ा वितरण अभी तक क्यों नहीं किया गया यदि तत्कालीन सरकारों ने नहीं किया था तो बाद में आने वाली सरकारों की जिम्मेदारी नहीं थी के जाँच की जाती तथा राहत एवं सहायता राशि निकालकर गैस पीडि़तों में बांटी जाती लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि गैस पीडि़तों के साथ बहुत बड़ी धोकेबाजी़ कुछ पार्टियों व संगठनों ने मिलजुलकर ग़बन कर लिया अन्यथ अभी तक गैस पीडि़त मुआवज़े को तरस नहीं रहे होते ।
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अमेरिका के राजनयिक हेनरी किसिंजर का 30 नवंबर को 100 साल की उम्र में निधन हुआ। आइये आपको बताते है कि कैसे भारत के दुश्मन नंबर एक कहे जाने वाले इस शख्स ने भोपाल कांड के जिम्मेदारों को बचाया।
भारत के मध्य प्रदेश का भोपाल शहर की धरती पर भी कुछ ऐसा हो चुका है जो शायद सदियों तक नहीं भुलाया जा सकता। भोपाल में 3 दिसंबर सन 1984 को रात के समय एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना हुई। इस घटना से तुरंत लभगभ 8000 लोग मरे और इसके बाद उसके प्रभाव से भी तीन-चार हफ्तों तक लोगों के मरने की खबरें आती रही। कुल मिलाकर लगभग 15 हजार लोगों की इस दुर्घटना में जान चली गयी थी। दरअसल भोपाल स्थित अमेरिका की यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के कारखाने से एक ज़हरीली गैस का रिसाव हुआ और यह पूरे शहर में फैल गयी। कंपनी के आसपास के लोगों ने तो तुरंत दम तोड़ दिया था लेकिन अधिकतर लोग धीरे-धीरे जहरीली हवा के फैलने के बाद मरे। बहुत सारे लोग अनेक तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए। भोपाल गैस काण्ड में मिथाइलआइसोसाइनेट (MIC) नामक ज़हरीली गैस का रिसाव हुआ था। जिसका उपयोग कीटनाशक बनाने के लिए किया जाता था। इस घटना को घटे सालों बीत गये लेकिन इस घटना के तार अमेरिका के एक शख्स से जुड़े थे जिसका निधनव 30 नवंबर को हुआ। अमेरिका के राजनयिक हेनरी किसिंजर का 30 नवंबर को 100 साल की उम्र में निधन हुआ। आइये आपको बताते है कि कैसे भारत के दुश्मन नंबर एक कहे जाने वाले इस शख्स ने भोपाल कांड के जिम्मेदारों को बचाया।
इस अमेरिकी शख्स के कारण भोपाल कांड के पीड़ित सालों कर इंसाफ के लिए भटकेरियलपोलिटिक के उस्ताद अमेरिका के दिग्गज राजनयिक हेनरी किसिंजर ने मैकियावेलियन चालाकी के साथ अंतरराष्ट्रीय संबंधों की विश्वासघाती धाराओं को पार किया, और अपने पीछे गुप्त संचालन और गुप्त लेनदेन का निशान छोड़ दिया।
ऐसे ही एक सौदे में, किसिंजर ने, 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के बाद अमेरिकी रासायनिक कंपनी यूनियन कार्बाइड को कानूनी जवाबदेही से बचाने में विवादास्पद भूमिका निभाई और पीड़ितों को पर्याप्त मुआवजे के लिए अभी भी अदालतों में भटकने के लिए अपनी चालाकी से काम लिया।
भोपाल त्रासदी 1984
1984 में 2 और 3 दिसंबर की मध्यरात्रि को भोपाल में यूनियन कार्बाइड कारखाने से जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस के रिसाव ने 15000 से अधिक लोगों की जान ले ली और 1 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए। गैस रिसाव के तुरंत बाद, मध्य प्रदेश की राजधानी में अराजकता और तबाही मच गई। हजारों निवासियों की आँखें चुभने लगी थीं और उनके फेफड़े सांस लेने के लिए हांफ रहे थे। लोगों ने अपने घर छोड़ दिए। शहर के अस्पताल श्वसन संबंधी बीमारियों, त्वचा के जलने और अंधेपन से जूझ रहे रोगियों की भीड़ से भरे हुए थे। त्रासदी के बाद के दिनों में मरने वालों की संख्या बढ़ती रही। मरने वालों की सटीक संख्या एक विवादास्पद मुद्दा बनी हुई है, जिसका अनुमान 15,000 से लेकर चौंका देने वाली 25,000 तक है।
भोपाल त्रासदी 1984 का जिम्मेदार कौन था?
गिरफ्तार किए गए लोगों में यूनियन कार्बाइड के अध्यक्ष वॉरेन एंडरसन भी शामिल थे। हालाँकि, एंडरसन को वापस लौटने के वादे पर जमानत पर रिहा कर दिया गया था। इसके बाद भारत सरकार ने अमेरिकी अदालत में यूनियन कार्बाइड के ख़िलाफ़ 3.3 अरब डॉलर के हर्जाने का दावा दायर किया।
किसिंजर यूनियन कार्बाइड कनेक्ट
किसिंजर की परामर्श कंपनी किसिंजर एसोसिएट्स ने आपदा के बाद यूनियन कार्बाइड को एक ग्राहक के रूप में लिया और वर्षों तक उनकी ओर से पैरवी की। मई 1988 में भारतीय उद्योगपति जेआरडी टाटा द्वारा तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी को लिखा गया एक पत्र आपदा के पीड़ितों के लिए लंबी मुआवजा वार्ता के संबंध में किसिंजर की गहरी चिंताओं को उजागर करता है। टाटा ने कहा किसिंजर ने सोचा कि यूनियन कार्बाइड एक “निष्पक्ष और उदार समझौता” करने के लिए तैयार है जो “किसी भी हमले या आलोचना का प्रभावी ढंग से मुकाबला करेगा” क्योंकि यह भारतीय अदालतों द्वारा प्रस्तावित रकम से अधिक है।हेनरी किसिंजर के कनेक्शन का खुलासाटाटा ने कहा डॉ हेनरी किसिंजर, जो समिति के एक प्रमुख सदस्य और मेरे अच्छे मित्र हैं, जैसा कि आप जानते होंगे, अमेरिका में यूनियन कार्बाइड सहित कई सरकारों और बड़े निगमों के सलाहकार और सलाहकार हैं। उन्होंने मुझे उनके और उनके बारे में बताय। भोपाल आपदा के पीड़ितों को भुगतान की जाने वाली मुआवजे की राशि पर समझौते पर पहुंचने में लंबी देरी पर उनकी अपनी चिंता है।
फरवरी 1989 में, 24 दिनों के गहन कानूनी विचार-विमर्श के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने यूनियन कार्बाइड को 470 मिलियन डॉलर का अंतिम भुगतान करने का आदेश दिया। टाटा ने कहा “जनता की राय, उन्होंने (किसिंजर ने) सोचा, इस तरह के समझौते का पुरजोर समर्थन करेंगे क्योंकि इससे न केवल पीड़ितों को बहुत उदार मुआवजा मिलेगा, जिसके लिए उन्होंने इतने लंबे समय तक इंतजार किया था, बल्कि यह उन्हें लंबे समय के बजाय अभी भी दिया जाएगा। इस मामले में अमेरिकी कॉर्पोरेट हितों, विशेष रूप से यूनियन कार्बाइड और इसके वर्तमान मूल संगठन डॉव केमिकल्स के संरक्षण के लिए अमेरिकी सरकार ने इन निगमों को जवाबदेही से बचाकर भोपाल आपदा पीड़ितों के लिए न्याय में बाधा उत्पन्न की है।470 मिलियन डॉलर के समझौते की व्यापक रूप से निंदा की गई क्योंकि यह त्रासदी के विशाल पैमाने और प्रभावित समुदायों पर इसके स्थायी प्रभाव को संबोधित करने में बेहद अपर्याप्त था। समझौते का सबसे स्पष्ट दोष यूनियन कार्बाइड और उसके प्रबंधकों के खिलाफ सभी आरोपों को हटाना था, हालांकि 1991 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे पलट दिया था। हालाँकि, एंडरसन वास्तव में कभी भी भारतीय अदालत में नहीं पहुंचे और 2014 में फ्लोरिडा के सुरम्य शहर वेरो बीच में 92 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई। जेआरडी टाटा का पत्र इस संदर्भ में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है कि यह भोपाल आपदा में पीड़ितों और उनके बाद आने वाली पीढ़ी की तुलना में बहुत कम धनराशि देने में अमेरिकी सरकार और किसिंजर की मिलीभगत को उजागर करता है।
भोपाल गैस पीडि़तों को अभी तक न्याय न मिलने उचित मुआवज़ा न मिलने के लिये के/ तत्कालीन से लेकर वर्तमान/केन्द्र और राज्य सरकारें जि़म्मेदार नहीं है क्या??असल में बहुत बड़ा $गबन किया गया है , गैस कांड होते ही सहायता के लिये अपील की गई विदेशों से बहुत बड़ी बड़ी धनराशि आई, देशवासियों व प्रदेशवासियों स्वयं भोपाल के उद्योगपतियों ने भी दिया था सहायता धन लेकिन अंतरिम राहत के नाम पर चंद रूपया बांटकर क्या कर लिया गया $गबन?? क्या नागरिकों की सुरक्षा और स्वास्थ्य रक्षा की जि़म्मेदारी सरकारों की नहीं बनती??
अमरीकन कंपनी ने जितनी राशि मुआ़वज़ा बांटने के लिये दिया था क्या वो पूरी बाट दी गई यदि नहीं तो उस राशि का मुआवज़ा वितरण अभी तक क्यों नहीं किया गया यदि तत्कालीन सरकारों ने नहीं किया था तो बाद में आने वाली सरकारों की जिम्मेदारी नहीं थी के जाँच की जाती तथा राहत एवं सहायता राशि निकालकर गैस पीडि़तों में बांटी जाती लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि गैस पीडि़तों के साथ बहुत बड़ी धोकेबाजी़ कुछ पार्टियों व संगठनों ने मिलजुलकर ग़बन कर लिया अन्यथ अभी तक गैस पीडि़त मुआवज़े को तरस नहीं रहे होते ।