सर्वेट्स या चौकीदार से चालाक लोग अपना काम निकालने के लिये ये कह देते हैँ के बंगले या इस आ़लीशान हवेली के असल मालिक तो आप ही हो। लेकिन वो उसे अपने सर्वेंट क्वार्टर या चौकीदार केबिन में तभी तक रखते हैं जब तक उससे काम निकालना होता है जब उससे अपना काम नहीं निकलता तो बेमुरव्वती से उसे बाहर कर देते हैं । तो फिर सर्वेंट क्वार्टर या चौकीदार केबिन के अलावा बंगले या हवेली के किसी कमरे में हिस्सेदारी देने की बात तो कतई काल्पनिक भी नहीं है।
यही हाल मुसलमानों का है कि उनके माथे पर अल्पसंख्यक का बदनुमा दाग उसी ने लगाया था और मुसलमानों को सिर्फ अल्पसंख्यक प्राकोष्ठ नामी जुमलेबज़ी देकर उन्हें चौकीदार केबिन या सर्वेंट क्वार्टर तक ही सीमित रखा , मुख्य मकान में या बंगले के कमरों में हिस्सा यानी पार्टी की मेने बॉडी की पोस्ट देने से हमेशा गुरेज़ किया सिवाए उस मुसलमान नामी आदमी के जिसको वो जानते हैं के ये अंदर से मुसलमान नहीं हैं बल्कि हमारा टाइगर है जो अपनी ही कौ़म को भौंकता रहता है। इसी का फ़ायदा अन्य पार्टियों ने भी उठाया और मुसलमान नामी जुम्मन हर पार्टी हर संस्था में अल्पसंख्यक प्रकोष्ट का झुनझुना बजाकर खुश होता रहा।
लगभग सभी राजनीतिक दलों के पास अल्पसंख्यक विभाग नाम का सर्वेंट्स क्वार्टर मौजूद हैं। ये सभी राजनीतिक दल इस समय मुसलमानों को पार्टी में कोई पद नहीं दे रहे बस मुसलमानों को अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ, अथवा मुस्लिम मोर्चा, या मुस्लिम मंच, या पसमांदा प्रकोष्ठ , इत्यादि का वार्ड अध्यक्ष, अल्पसंख्यक मोर्चा जिलाध्यक्ष, अल्पसंख्यक मोर्चा प्रदेश अध्यक्ष जैसा पद दे देते हैं और ये पद पाकर हमारे जुम्मन भाइयों का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। अब यही खेल दूसरी पार्टियाँ मुस्लिम मंच, पसमांदा पार्टी, मुस्लिम मोर्चा के नाम से भी कर रही हैं।
असल में तुम कुछ नहीं हो। तुम सिफऱ् अपनी पार्टी का बिना पगार का सर्वेंट हो। और ये अल्पसंख्यक विभाग सर्वेंट्स क्वार्टर हैं।
पॉलिसी है चुनाव से पहले चढ़ाते रहो, चुनाव के बाद दबाते रहो।
2023-24 में भीड़ चाहिए मजदूर भी चाहिए उसे देखते हुए फि़लहाल तो बाढ़ सी आ गई है अल्पसंख्यक पदों की, कुकुरमुत्ता की तरह हर तरफ़ पद बांटे जा रहे हैं साथ में नेता जी के हाथ से पत्र लेते हुए फ़ोटो मानो जन्नत का परवाना मिल गया हो, गांव मोहल्ले में गर्व से बताते घूमते हैं कि मैं बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चे का सचिव हूं , पसमांदा पार्टी का जनरल सैक्रेटरी हूँ, कांग्रेस अल्पसंख्यक मोर्चे का उपाध्यक्ष या महासचिव हूं, सपा अल्पसंख्यक मोर्चे का प्रदेश अध्यक्ष हूं।
असलियत में इससे पहले जितने चुनाव हुए उससे पहले भी इसी तरह जुम्मनों को पोस्टें दी गई थीं पर क्या हुआ उनका?? क्या उन्हें सत्ता में शासन में, व्यवस्था में तो दूर की बात पार्टी की प्रमुख पोस्टों पर कहीं जगह मिली ??? जिस दिन जुम्मन ने मांग क र दी हिस्सेदारी की उसी दिन से उसे हाशिये पर डाल दिया गया और किसी न किसी कांड में उसका नाम उछाल दिया गया । इसलिए मुसलमान नामी इन कार्यकर्ताओं ने कहना चाहता हूँ के आज़माए हुओं को आज़माना बेवकू़$फी है , सर्वेँट क्वार्टर या चौकीदारी की सोच से ऊपर उठकर अब हिस्सेदारी की सोचो। संगठित हो और मुहाइदे /लिखित अनुबंध /करो जो आपका खुलकर साथ दे आप उसका ही साथ दो, जो सि$र्फ चुनाव से पहले ज़रा सा कुछ बोल दे वो चालाक है , यूज़ एण्ड थ्रो वाला है उससे होशियार रहें , कब तक दरी चादरें बिछाएँगे, कब तक दूसरों की चिंता करेंगे , अगर उन मतलबियों ने तुम्हारी ज़रा भी चिंता की होती तो आज तुम्हारी ये हालतें नहीं होती। अभी भी न जागे तो इस चुनाव के बाद इतनी बुरी हालतें करेंगे ये $फजऱ्ी हमदर्द के अल्पसंख्यकों को पसमांदा बना के छोड़ेंगे । फिर जिसे तुम इन मतलबियों की वजह से बुरा कह रहे हो उसी की छाया में जाना पड़ेगा । तो अब भी जाग जाओ। दूसरों के इस्तेमाल की चीज़ न बनो अपनी दानिशमंदी /विवेक/ का इस्तेमाल करो और अपनी शर्तों पर वोटिंग करो। मेरी कोई बात बुरी लगी हो तो मा$फ कर देना मगर षणयंत्रकारियों को इस बार साफ कर देना।